Sunday, March 3, 2013

निकाह कैसे हो?



निकाह कैसे हो?

तुम मे से जो मर्द और औरत बेनिकाह हो उनका निकाह कर दो और अपने गुलाम और लौंडियो का भी| अगर वो मुफ़लिस भी होगे तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से गनी बना देगा| अल्लाह तालाह कुशादगी वाला और इल्म वाला हैं| (सूरह नूर सूरह नं 24 आयत नं 32)

कुरान की आयत से साबित हैं के निकाह करना कराना अल्लाह का हुक्म है जिसके लिये अमीर या गरीब होना शर्त नही|



निकाह के माने

लुगत मे निकाह के माने मिलाना या जुड़ने के हैं| निकाह दरअसल एक किस्म की हद हैं जो के मर्द और औरत पर इसलिये जारी करी जाती हैंhttp://www.islam-the-truth.com/Images/nikahk1.jpg के दोनो एक दूसरे से जायज़ तरीके से जिस्मानी तस्कीन का फ़ायदा उठा सके| शरियते इस्लामिया ने औरत और मर्द के मिलने के लिये जो दरवाज़ा खोला हैं वो निकाह हैं ताकि मर्द और औरत चोरी छिपे या खुलेआम बेहयाई करे बल्कि जायज़ तरीके से मिल सके या हमबिस्तर हो सके| इस जायज़ दरवाज़े के खोलते ही इस्लाम ने जिन औरतो को मर्द के निकाह के लिये हलाल किये उस अल्लाह ने कुरान मे इस तरह ब्यान किया-

हराम की गयी तुम पर तुम्हारी मांए और तुम्हारी लड़किया और तुम्हारी बहन, तुम्हारी फ़ूफ़ीया और तुम्हारी खालाए और भाई की लड़कीया और बहन की लड़किया और तुम्हारी मांए जिन्होने तुम्हे दूध पिलाया हो और तुम्हारी दूध शरीक बहन बहने और तुम्हारी सास और तुम्हारी परवरिश की हुई लड़किया जो तुम्हारी गोद मे हैं, तुम्हारी इन औरतो से जिन से तुम हमबिस्तरी कर चुके हो, हा अगर तुम इन से हमबिस्तरी किया हो तो तुम पर कोई गुनाह नही और तुम्हारे नवा्सो-पोतो की बीवीया और तुम्हारा दो बहनो को एक साथ निकाह करना| मगर जो हो चुका सो हो चुका, बेशक अल्लाह तालाह बख्शने वाला मेहरबान हैं| (सूरह अन निसा सूरह नं 4 आयत नं 24)

इस्लाम के इन हुदूद के जारी करने का मकसद सिर्फ़ एक अच्छे मआशरे को बनाना हैं ताकि निकाह करने वाली औरतो और आम औरतो मे फ़र्क नज़र आये जैसा के आज मगरिबी तहज़ीब मे देखने को मिलता हैं के बेटा मां से निकाह करता हैं बेटी बाप से हामला हैं वगैराह|

निकाह दरहकीकत एक ऐसा ताल्लुक हैं जो औरत मर्द के दरम्यान एक पाकदामन रिश्ता हैं जो मरने के बाद भी ज़िन्दा रहता हैं बल्कि निकाह हैं ही इसलिये के लोगो के दरम्यान मोहब्बत कायम रह सके| जैसा के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया-

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाके आपस मे मोहब्बत रखने वालो के लिये निकाह जैसी कोई दूसरी चीज़ नही देखी गयी| (इब्ने माजा)

हदीस नबवी से साबित हैं के निकाह औरत मर्द के साथ-साथ दरअसल दो खानदान का भी रिश्ता होता हैं जो निकाह के बाद कायम होता हैं| इसका अव्वल तो ये फ़ायदा होता हैं के अगर एक मर्द और औरत की निकाह से पहले मोहब्बत मे हो तो गुनाह के इमकान हैं लेकिन अगर उनका निकाह कर दिया जाये तो गुनाह का इमकान नही रहता दूसरे उनकी मोहब्बत हमेशा के लिये निकाह मे तबदील हो जाती हैं जो जायज़ हैं साथ ही दो अलग-अलग खानदान आपस मे एक-दूसरे से वाकिफ़ होते हैं और एक नया रिश्ता कायम होता हैं|

मोहब्बत के साथ-साथ निकाह नफ़्स इन्सानी के सुकुन का भी ज़रिय हैं जिससे इन्सान सुकुन और फ़ायदा हासिल करता हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-

और उसी की निशानियो मे से एक ये हैं की उसने तुम्हारे लिये तुम्ही मे से बीवीया पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करे और तुम लोगो के दरम्यान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी| इसमे शक नही गौर करने वालो के लिये यकिनन बहुत सी निशानिया हैं| (सूरह रूम सूरह नं 30 आयत नं 21)

कुरान की इस आयत से साबित हैं के निकाह मर्द और औरत के लिये एक सुकून हासिल करने का भी तरीका हैं जिससे मर्द और औरत दोनो फ़ायदा उठाते हैं जैसा के अमूमन देखने मे आता हैं के औरत और मर्द दोनो अपनी अज़वाजी ज़िन्दगी मे अपने होने वाली परेशनी के लम्हो मे एक दूसरो को फ़ायदा देते हैं और एक दूसरे के साथी कहलाते हैं और ये सुकून का ताल्लुक बिना निकाह के मुम्किन नही जैसा आदम अलै0 से लेकर आज तक हैं के नस्ल इन्सानी निकाह करती हैं और एक दूसरे को फ़ायदा देती हैं|

इसके साथ ही अल्लाह ने एक जगह कुरान मे फ़रमाया-

औरते तुम्हारी लिबास हैं तुम औरतो के|(सूरह अल बकरा सूरह नं 2 आयत नं 187)

कुरान के इस फ़रमान से ये साबित होता हैं के मर्द और औरत एक दूसरे के लिबास हैं और लिबास सिर्फ़ सतर ढापने और ज़ीनत इख्तयार किया जाता हैं लिहाज़ा मर्द और औरत जब तक निकाह मे नही होते उनका ज़ाहीरी बेज़ीनत हैं लिहाज़ा हर मर्द और औरत को जो शादी के अहल हैं निकाह करना लाज़िमी हैं|

हुकुक निकाह

निकाह भी एक किस्म की अल्लाह की इबादत हैं जिसके अमली तहत इन्सान ज़िना जैसे बदतरीन गुनाह से बचता हैं| साथ ही निकाह सिर्फ़ जिस्मानी तौर पर नफ़स का फ़ायदा उठाने का नाम नहि बल्कि मआशरे को तहज़ीब मे ढालने का नाम भी हैं जिसके सबब इन्सान अपनी नस्ल को बढाने के साथ साथ अपनी औलाद को दीनी तालिम दे कर मआशरे के निज़ाम को बेहतर कर सकता हैं| अमूमन लोग निकाह तो जानते हैं लेकिन निकाह के हुकुक से नावाकिफ़ हैं| इसके साथ ही निकाह करने वाले ईमान की पाकिज़गी का भी अहसास होता हैं जिससे उसकी आंख, कान, हाथ ज़िना जैसे गुनाह से बचती हैं| अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का इरशाद हैं-

हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाजब एक शख्स निकाह करत तो उसए आधा ईमान मिल जाता हैं तो उसे चाहिए के आधे के लिये अल्लाह से डरता रहें| (सिलसिलातुल अहदीस असहीह)

लिहाज़ा निकाह करना ईमान मे भी शामिल हैं|

हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं के तीन हज़रात(अली बिन तालिब, अबदुल्लाह बिन उमरो और उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि0) नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की अज़वाज मुताहरात के घरो की तरफ़ आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इबादत के मुताल्लिक पूछने गये| जब इनको आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के अमल के बारे मे बताया गया तो जिसे इन्होने कम समझा और कहा के हमारा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से क्या मुकाबला आप के तो तमाम अगली पिछली लगज़िशे माफ़ कर दी गयी हैं| इनमे से एक ने कहा के आज से मैं हमेशा रात मे नमाज़ पढा करुंगा| दूसरे ने कहा के मैं हमेशा रोज़े रखा करुंगा और कभी नागा नही करुंगा| तीसरे ने कहा के मैं औरतो से जुदाई इख्तयार कर लूगा और कभी निकाह नही करुंगा| फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और इनसे पूछाक्या तुमने ही ये बाते कही थी| सुन लो अल्लाह की कसम अल्लाह रब्बुल आलामीन से मैं तुम सब से ज़्यादा डरने वाला हूं| मैं तुम सबसे ज़्यादा परहेज़गार हूं लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूं तो इफ़तार भी करता हूं, नमाज़ भी पढता हूं और सोता भी हूं, और औरतो से निकाह भी करता हूं| मेरे तरिके से जिसने बेरगबती करी वो मुझ से नही हैं| (सहीह बुखारी)

हदीस नबवी से साबित हैं के निकाह करना रसूल का तरीका और इन्सान की फ़ितरत हैं जिसको करना रसूल से अलग होना हैं| जैसा के दिगर कौमो मे लोग रहबानियत या सन्यास वगैराह ले लेते हैं और दुनिया से कट जाते हैं ताकि ऊपरवाले से मिल जाये| जबकि शरियते इस्लाम मे रहबानियत या सन्यास गुनाह हैं बल्कि हर इन्सान जो निकाह की ताकत रकता हैं उस पर लाज़िमी हैं के वो निकाह भी करे और इसके साथ-साथ इस्लाम के दूसरे अरकान को अदा करे जैसा के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने किया और निकाह करने वाला नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की सुन्नत का मुखालिफ़िन हैं| जबकि अल्लाह से डर कर निकाह करना कही से भी साबित नही बल्कि खुद अल्लाह ने कुरान मे हुक्म दिया-

ईमानवालो अल्लाह से डरो जैसा के उससे डरने का हक हैं और इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर तुम्हे मौत आये| (सूरह अल इमरान सूरह नं 2 आयत नं 102)

लिहाज़ा हर इन्सान को इस्लाम की हद के अन्दर रहते हुये अल्लाह से डर रखना चाहिये|

निकाह मे होने वाली ज़ात बिरादरी की बन्दिश

अकसर लोग निकाह के लिये अपने ही बिरदरी मे लड़का या लड़की को पसन्द करते हैं और जब तक अपनी बिरादरी मे कोई नही मिलता निकाह नही करते| जिसके सबब अकसर अकसर दूसरे बिरादरी के लड़के और लड़किया बेनिकाह काफ़ी उम्र तक बैठे रहते हैं और कई तो ताज़िन्दगी बे निकाह रह जाते हैं और इसकी ज़िन्दा मिसाल हमारे मआशरे मे मौजूद हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-

और उसने दो ज़ात बनाई एक मर्द और एक औरत| (सूरह कियामह सूरह नं 75 आयत नं 39)

इस्लाम की ये खूबी हैं के इस्लाम मे इन्सान कि फ़ितरत के सबब हर मसले का हल रखा और किसी मसले के हल के लिये बस इन्सान को अल्लाह और उसके रसूल के बताये एहकाम पर अमल करना हैं| बावजूद इसके लोग इस्लाम के बताये तरिको से फ़ायदा नही उठाते और नुकसान मे रहते हैं| अल्लाह ने इन्सान की तख्लीक के लिये सिर्फ़ एक जोड़ा आदम अलै0 और हव्वा अलै0 को बनाया और इनसे तमाम नस्ल इन्सानी की तख्लीक की अगर अल्लाह ने ज़ात बिरादरी की बन्दीश को भी इन्सान के निकाह के शर्त के तौर पर लगाया होता तो आदम अलै0 और हव्वा अलै0 के बाद दुनिया मे कोई इन्सान नही होता या अल्लाह कई आदम अलै0 और हव्वा अलै0 की तरह कई और जोड़े पैदा कर दुनिया मे एक सिस्टम बना देता के हर इन्सान अपनी ही पुरखो की नस्ल मे निकाह करे और कई और जोड़े आदम अलै0 और हव्वा अलै0 की तरह पैदा करना अल्लाह के लिये कोई मुश्किल काम नही| बावजूद इसके इन्सान इन तमाम बातो पर गौर फ़िक्र किये बिना ही इस अहम सुन्नत को अदा करने मे ताखिर करता हैं| अल्लाह ने कुरान मे एक जगह और फ़रमाया-

लोगो अल्लाह से डरो जिसने तुम्हे एक जान से पैदा किया और उसी मे से उसके लिये जोड़ा पैदा किया और उन दोनो से बहुत से मर्द और औरत फ़ैला दिये| ( सूरह निसा सूरह नं 4 आयत नं 1)

कुरान की इस आयत से साबित हैं के अल्लाह ने हर मर्द और औरत का जोड़ा बनी आदम की औलादो मे से ही रखा हैं लिहाज़ा हर इन्सान को जो ईमानवाला मर्द या औरत मिले उसे बिना ताखिर के निकाह कर ले| क्योकि किसी इन्सान को खुद से ये हासिल नही के ज़ात बिरादरी मे बट जाये बल्कि ज़ात बिरादरी मे बाटना भी अल्लाह ही का काम हैं जैसा के कुरान से साबित हैं-

अल्लाह वही हैं जिसने इन्सान को पानी से पैदा किया| फ़िर उसे नस्ली और खान्दानी रिश्तो मे बाट दिया| (सूरह फ़ुरकान सूरह नं 25 आयत नं 54)

लिहाज़ा जात बिरादरी की बन्दीश को निकाह जैसे नेक काम से जोड़ना सरासर गलत हैं क्योकि अल्लाह ने नस्ल और खानदान सिर्फ़ इन्सान की पहचान बाकि रखने के लियेए किया के निकाह के मौके पर अपने से दूसरे को नीचा या बड़ा खानदान तसव्वुर करना सरासर गलत हैं| बिरादरी का तसव्वुर सिर्फ़ इन्सान को बड़ा या छोटा साबित करता हैं जबकि ये अल्लाह ही बेहतर जानता हैं कि उसके नज़दीक कौन बड़ा या छोटा हैं|

बिरादरी से बाहर निकाह करने की सबसे बड़ी हुज्जत हज़रत अबदुर्ररहमान बिन औफ़ का निकाह हैं जो कुरैश खानदान से थे और उन्होने अंसार की लड़की से निकाह किया था और खुद अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने हज़रत सफ़िया से निकाह किया था जो कुरैश खानदान से थी|

निकाह कौन करे

निकाह के तल्लुक से अकसर ये देखा जाता हैं और लोगो मे भी ये आम बात हैं के जब तक कोई बेहतर कमाऊ लड़का मिल जाये लड़की का निकाह नही किया जाता और उसे बैठाले रखा जाता हैं, अगर किसी लड़के या लड़की की बड़े भाई या बड़ी बहन या छोटे भाई या छोटी बहन की शादी ना हुई हो तो दूसरे भाई बहन के आने वाले रिश्तो को भी मना कर दिया जाता हैं या मामला एक मुद्दत तक के लिये तय कर रोक दिया जाता हैं के जब दूसरे की होगी तभी साथ मे निकाह किया जायेगा| दूसरे हमारे मुल्क के कानून के तहत लड़के की शादी 21 साल से पहले और लड़की की शादी 18 साल से पहले करना कानूनन जुर्म समझा जाता हैं| जबकि शरियत इस्लामिया इसके बारे मे क्या कहती हैं आईये ज़रा गौर करे-

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया नौजवानो की जमात तुम मे से जो शख्स निकाह की ताकत रखता हैं इसे चाहिए के निकाह कर ले| इसकी वजह से निगाह नीची रहती हैं और जिस्म बदकारी से महफ़ूज़ रहता हैं और जिसे निकाह की ताकत हो उसे चाहिए के रोज़े रखा करे क्योकि रोज़ा ख्वाहिशो को कुचल देता हैं| (बुखारी, मुस्लिम, अबू दाऊद, निसाई, तिर्मिज़ी)

हदीस नबवी से पता चलता हैं के निकाह खालिस जिस्म को बदकारी से बचाने और नफ़्स की ज़रुरियात को जायज़ तरिके से पूरा करने का नाम हैं जिसके सबब इन्सान गुनाह से तो बचता ही हैं और नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इस अहम सुन्नत को अदा कर नेकी का भी हकदार बनता हैं यही वजह के के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने नौजवानो को निकाह की तरगीब दिलाई| दूसरी सूरत मे निकाह की ताकत(यानि कूवते मर्द होने या कमज़ोर होने की सूरत मे या बीवी के जायज़ अखराजात पूरा ना कर पाने) रख पाने वाले शख्स को रोज़े की तरगीब दिलाई ताकी इन्सान गुनाह से बच सके क्योकि रोज़ा इन्सान के शहवत के असर को कुचल देता हैं|

इसी तरह से बुखारी की एक दूसरी हदीस से साबित हैं-

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाहम नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के ज़माने मे नौजवान थे| हमे कोई चीज़ मयस्सर थी| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायानौजवानो की जमात तुम मे से जिसे भी निकाह करने की माली ताकत हो इसे निकाह कर लेना चाहिए क्योकि ये नज़रो को नीची रखने वाला और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करने वाला अमल हैं और जो कोई निकाह करने की ताकत रकह्ता हो इसे चाहिये के रोज़े रखे क्योकि रोज़ा इसकी ख्वाहिशात नफ़सानी को तोड़ देगा| (बुखारी)

इस हदीस मे सिर्फ़ इतना ज़्यादा हैं की हमे कोई चीज़ मयस्सर थी जिससे मुराद जो कम से कम दो लोगो के लिये काफ़ी हो जैसे क्घर, कपड़े, बर्तन वगैराह| यहा ये बात गौर करने वाली हैं के इस्लाम का इब्तेदाई दौर बहुत ही गुरबत भरा दे जिसके सबब अकसर सहाबा कई-कई फ़ांका करते थे के आजकल की तरह के हर चीज़ मयस्सर होने के बावजूद निकाह मे ताखिर् की जाती हैं जिसके भयानक नतायज आज देखने को मिलते हैं के कमसिनी की ही उम्र मे लड़का-लड़की का इश्क करना या घर से भाग जाना वगैराह|

हज़रत सहल बिन साद रज़ि0 से रिवायत हैं के एक औरत नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के पास आई और अर्ज़ किया के मैं इसलिये हाज़िर हूं के अपनी http://www.islam-the-truth.com/Images/nikahk.jpgज़ात आपको हिबा कर दूं| फ़िर नज़र की नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इसकी तरफ़ और खूब नीचे से ऊपर तक निगाह की इसकी तरफ़ और फ़िर अपना सर मुबारक झुका लिया और जब औरत ने देखा के आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इसे कोई हुक्म नही दिया तो बैठ गयी और एक सहाबी रज़ि0 उठे और अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अगर आप को इसकी हाजत नही तो मुझसे इसका अकद कर दीजिये| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तेरे पास कुछ हैं| इसने अर्ज़ किया कुछ नही अल्लाह की कसम अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तो अपने घरवालो के पास जा और देख शायद कुछ पाये| फ़िर वो गये और लौट आये और अर्ज़ किया के अल्लाह की कसम मैने कुछ नही पाया| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़िर फ़रमाया के जा देख अगरचे लोहे का छल्ला हो वो फ़िर गया और लौट आया और अर्ज़ कि अल्लाह की कसम अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम एक लोहे का छ्ल्ला भी नही है मगर ये मेरी तहबन्द हैं| सहल रज़ि0 ने कहा के इस गरीब के पास चादर भी थी| सो इसमे से आधी इस औरत की हैं| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हारी तहबन्द से तुम्हारा क्या काम निकलेगा के अगर तुमने इसे पहना तो इस पर इसमे से कुछ होगा और इसने पहना तो तुझ पर कुछ होगा| फ़िर वो शख्स बैठ गया(यानि मायूस होकर) यहा तक के जब देर तक बैठा रहा तो खड़ा हुआ और जनाब रसूल अल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने जब इसको देखा के पीठ मोड़ कर चला, सो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने हुक्म दिया वो फ़िर बुलाया गया| जब आया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया के तुझे कुछ कुरान याद हैं| इसने अर्ज़ किया के मुझे फ़ला सूरत याद हैं और इसने सूरतो को गिना और आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया के कुरान को अपनी याद से पढ़ सकता हैं| इसने अर्ज़ किया के हां| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से फ़रमाया के जा मैने तेरा ममलूक कर दिया(यानि निकाह कर दिया) औज़ मे इस कुरान के जो तुझे याद हैं(यानि ये सूरते इसे याद दिला देना यही इसका मेहर हैं)| (बुखारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ि, दार्मी)
·         अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इस हदीस से निकाह के लिये जो बाते निकल कर सामने आती हैं वो ये हैं-
·         निकाह से पहले लड़की देखना
·         औरत अपना रिश्ता खुद दे सकती हैं|
·         निकाह के लिये माली हालत लाज़मी नही हैं बस मुसलमान होना और दीनदार होना काफ़ी हैं|
·         मेहर मे बीवी को देने के लिये कम से कम लोहे का छ्ल्ला होना लाज़िमी हैं|
·         और अगर माल के ऐतबार से लोहे का छ्ल्ला भी हो तो कम से कम कुरान का कुछ हिस्सा ज़रूर याद होना चाहिये जो के मेहर के बदले मुकरर्र किया जा सके|
हमारे मौजूदा मआशरे मे आजकल शायद ही कोई ऐसा हो जिसके मेहर मे देने के लिये लोहे का छ्ल्ला भी हो| जबकि शरियत इस्लाम ने निकाह को इतना सस्ता कर दिया बावजूद लोगो ने निकाह को महगां कर ज़िना को आज सस्ता कर दिया जिसके सबब लोग गुनाह करने से भी नही डरते| अकसरियत का ये गुमान हैं के जब तक निकाह मे अच्छी खासी रकम खर्च की जाये निकाह नही हो सकता| जबकि जिस फ़ितरी तकाज़े के तहत शरियत ने निकाह को सस्ता किया उस पर कोई गौर फ़िक्र नही करता| मुसलमान कतई इस बात को भूले के अपनी नफ़्स पर ज़ुल्म करना भी गुनाह हैं और निकाह मे ताखिर से सिर्फ़ गुनाह के इमकान बढ़ते हैं| कुछ लोगो का ये माना हैं के कम उम्र मे निकाह कर देने से सेहत पर फ़र्क पड़ता हैं जबकि मेडिकल सांइस से ये साबित हैं के कम उम्र मे बच्चा जनने वाली औरत के जिस्मानी कूवत मे इज़ाफ़ा और फ़ुर्तीलापन बढ़ता हैं और जिस्म के अलग-अलग हिस्सो की तरक्की होती हैं|

आम तौर से पढ़ने वाले लड़को की ये सोच होती हैं के जब तक पढ़ाई मुकम्मल हो जाये और इसके बाद कोई बेहतर नौकरी या कारोबार जम जाये शादी करेगे क्योकि शादी के बाद बीवी-बच्चो के अखराजात कहा से पूरा करेगे| जबकि अल्लाह का ये दावा हैं के कोई किसी को नही खिलाता हर कोई अल्लाह के हुक्म से रोज़ी पाता हैं| इरशाद बारी तालाह हैं-

तुम मे से जो मर्द और औरत बेनिकाह हो उनका निकाह कर दो और अपने गुलाम और लौंडियो का भी| अगर वो मुफ़लिस भी होगे तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से गनी बना देगा| अल्लाह तालाह कुशादगी वाला और इल्म वाला हैं| (सूरह नूर सूरह नं 24 आयत नं 32)

इसमे शक नही के तुम्हारा रब जिसके लिये चाहता हैं रोज़ी बढ़ा देता हैं और जिसके लिये चाहता हैं तंग कर देता हैं और इसमे शक नही कि वह अपने बन्दो से बहुत बाखबर और देखभाल रखने वाला हैं| (सूरह बनी इसराईल सूरह नं 17 आयत नं 30)

हदीस नबवी हैं के-

हज़रत अबू हातिम मज़नी रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाजब तुम्हारे पास ऐसा शख्स आये जिसके दीन और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| अगर ऐसा नही करोगे तो ज़मीन मे फ़ित्ना और फ़साद होगा| सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अगरचे वो मुफ़लिस ही क्यो हो| फ़रमायाअगर दीनदारी और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| यही अल्फ़ाज़ तीन मरतबा फ़रमाये| (तिर्मिज़ि)

हदीस और कुरान की ये आयत और इस जैसी बहुत सी आयत जिसमे अल्लाह ने इस बात का दावा किया के रोज़ी का मलिक सिर्फ़ अल्लाह हैं और वो ही जिसे चाहता हैं माल-दौलत देता हैं जिसे चाहता हैं मुफ़्लिस कर ले लेता हैं तो जिन लोगो का ये ख्याल हैं के वो पहले माल जमा कर ले फ़िर निकाह करे तो ये सिर्फ़ एक किस्म की बेवकूफ़ी होगी और कुरान की इन सूरतो का इन्कार| लिहाज़ा हर किसी को चाहिए के अल्लाह ही से सारी तवक्को रखे और उसी से मदद मांगे और दीन के जो अरकान जिस वक्त पूरा करने का हुक्म दिया उसे उसी वक्त मे पूरा करे|

निकाह किससे करे

निकाह के लिये अकसर लड़की-लड़का का इन्तेखाब इस बिनाह पर होता हैं के वो खूबसूरत, खानदानी और मालदार हो जबकी शरियत ने लड़की-लड़का का इन्तेखाब जिन चीज़ो पर किया हैं वो इस तरह हैं-

हज़रत अबू हातिम मज़नी रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाजब तुम्हारे पास ऐसा शख्स आये जिसके दीन और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| अगर ऐसा नही करोगे तो ज़मीन मे फ़ित्ना और फ़साद होगा| सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अगरचे वो मुफ़लिस ही क्यो हो| फ़रमायाअगर दीनदारी और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| यही अल्फ़ाज़ तीन मरतबा फ़रमाये| (तिर्मिज़ि)

लिहाज़ा निकाह के लिये अमीर होना या ऊचां खानदान होना शर्त नही बस दीनदार होना काफ़ी हैं|

हज़रत अबदुल्लाह बिन उमरो रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया दुनिया फ़ायदे की चीज़ हैं और दुनिया के साज़ो सामान मे नेक औरत से बेहतर कोई चीज़ नही| (इब्ने माजा)

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाऔरतो से चार चीज़ो की वजह से निकाह किय जाता हैं| इसके माल की वजह से, इसके हसब नसब की वजह से, इसके हुस्न जमाल की वजह से, इसकी दीनदारी की वजह से| तू दीनदारी औरत से निकाह कर| तेरा भला हो| (इब्ने माजा, दारमी, अबू दाऊद)

हदीस नबवी से साबित हैं के निकाह के लिये औरत और मर्द का इन्तेखाब सिर्फ़ दीनदारी की बिना पर हैं|

हज़रत अनस रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायानिकाह करो मैं तुम्हारी कसरत पर फ़ख्र करूं| (इब्ने माजा)

हज़रत मअकल बिन यसार रज़ि0 से रिवायत हैं के एक शख्स नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे आया और कहामुझे एक औरत मिली जो उम्दा हसब जमाल वाली हैं मगर इसके औलाद नही होती तो क्या मैं इससे शादी कर लूं? नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायानही| फ़िर वो दोबारा आया तो आपने मना कर दिया| फ़िर वो तीसरी बार आया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाऐसी औरतो से निकाह करोजो मुहब्बत करने वाली हो और बहुत से बच्चे जनने वाली हो| बिला शुबहा मैं तुम्हारी कसरत से दिगर उम्मतो पर फ़ख्र करने वाला हूं| (अबू दाऊद)

मालूम हुआ के निकाह का एक मकसद ये भी हैं के मर्द और औरत अज़वाजी ज़िन्दगी के तहत कसरत से नई नस्ल की तख्लीक करे ताकि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अपनि उम्मत की तादाद पर फ़ख्र करे जबकि मौजूदा समाज मे अकसरियत का ख्याल बर्थ कन्ट्रोल यानी कम बच्चे पैदा करने का हैं ताकि वो एक या दो ही बच्चो को पैदा कर उनकी अच्छे से परवरिश कर सके| गौरतलब हैं के बच्चो की ज़्यादा से ज़्याद तख्लीक से उम्मत इस्लाम के मानने वालो की तादाद मे इज़ाफ़ा होगा जिसके सबब नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को फ़ख्र होगा के उनके उम्मती सबसे ज़्यादा हैं|

निकाह के लिये उम्

ये एक बहुत अहम मसला हैं क्योकि लड़का या लड़की के निकाह के लिये सही उम्र क्या हैं| आमतौर से मआशरे मे लड़कियो के वालिदैन ये सोचते हैं कम से कम लड़की कँपाया वी जमात मुकम्मल कर ले तब निकाह किया जाये ताकि सुसराल मे उसे जाहिल या फ़ूहड़ होने के ताने मिले|

हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के जब नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने उनसे निकाह किया उस वक्त इन की उम्र 6 साल थी और जब सोहबत की तो इस वक्त इनकी उम्र 9 साल थी और वो वोरना साल आप के पास रहे| (बुखारी)

ये हदीस कोई आम किस्म की मामूली हदीस नही हैं बल्कि उन तमाम वलिदैन के लिये एक अमली नमूना हैं जो बिना किसी जायज़ उज्र के बेटियो के निकाह मे ताखीर करते हैं| ज़रा हिसाब लगाईये के अगर एक लड़की 10 वी जमात तक तालिम लेती हैं तो उसकी उम्र 15-16 बरस की होती हैं और 12 वी जमात मुकम्मल करती हैं तो 18 या 200 बरस| अगर तालिम का ये सिलसिला जारी रहे यानि कोई डिप्लोमा या डिग्री जारी रहे तो तोड़े से सेंसर साल की उम्र मे ये तालिम का सिलसिला मुकम्मल होगा| गौर फ़िक्र की बात ये हैं के लड़का या लड़की के बालिग होने मे मुल्कि आबो हवा का दखल होता हैं और हमारे मुल्क की आबो हवा के मुताबिक लड़की तकरीबन 13-15 साल की उम्र मे बालिग हो जाती हैं इस लिहाज़ से खुद हिसाब लगाया जा सकता हैं के वालिदैन ने अपनी औलादो के निकाह मे कितनी ताखीर की| ये वक्त जो औलाद ने बिना निकाह के गुज़ारा हैं इतने लंबे अर्से इनको सिर्फ़ जायज़ नफ़सियात को दबाना पड़ता हैं और अपने आप पर ज़ुल्म करना पड़ता हैं| जिसके भयानक असरात का वालिदैन तसव्वुर भी नही कर सकते| मिडिया की कुछ मिसाल नीचे मौजूद हैं-
·         राष्ट्रीय सहारा अखबार ने 14 जुलाई 2006 मे एक रिपोर्ट दी जिसमे उत्तर प्रदेश हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी जिस्मफ़रोशी की मन्डी हैं जिसकी औसतन कमाई कमाईं हज़ार करोड़ सलाना हैं|
·         राष्ट्रीय सहारा अखबार ने 16 जून 2005 एक रिपोर्ट दी जिसमे मोबाईल के ज़रिये ब्लू फ़िल्मो और नंगी तस्वीरो के ज़रिये 2300 करोड़ का कारोबार हुआ|
अखबार की इन खबरो पर अगर गौर किया जाये तो ये पता चलता हैं कि ये करोबार किसी दूसरे मुल्क मे नही बल्कि हमारे मुल्क मे ही हुआ हैं और इस कारोबार मे हमारे समाज के ही लोग जुड़े हैं जिन्होने इस कारोबार को किया और समाज मे गन्दगी फ़ैलायी| सबसे खास बात ये की क्या इस ब्लू फ़िल्म और नंगी तस्वीरो के देखने वाले सिर्फ़ शादी-शुदा, बालिग मर्द और औरते ही थे या गैर शादी-शुदा, नाबालिग मर्द और औरते भी थी|

कोई शक नही के इन बदतरीन गुनाह से बचने के लिये सिर्फ़ एक रास्ता हैं और वो हैं के निकाह सही उम्र और सही वक्त पर हो ताकि नयी नस्ल इन बदतरीन गुनाह से बची रहे| खुद हज़रत आयशा रज़ि0 बताती हैं के उनका निकाह 6 साल मे और विदाई 9 बरस की उम्र मे हुई बहैसियत शौहर जनाब रसूलुल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अपनी बीवी की तमाम ज़िम्मेदारी उठाई और तालीम aर्बियत दी और नबी की वफ़ात के बाद खुद हज़रत आयशा रज़ि0 लोगो को कुरान और हदीस की तालिम देती हैं क्या 9 बरस नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की अज़वाजी ज़िन्दगी मे रहने तक हज़रत आयशा रज़ि0 ने कोई डिप्लोमा या डिग्री ली थी तो अवाम की अकसरियत यही जवाब देगी के नही|

इन तमाम बातो से मुराद ये नही की लड़की का तालीमी सिलसिला बन्द कर उसे फ़ौरन किसी के निकाह मे दे दिया जाये| एक औरत जब अपने शौहर की सरपरस्ती मे होती हैं तो ये ज़िम्मेदारी उसके शौहर की होती हैं के वो उसके तालीमी सिलसिले को जारी रखे|

निकाह से पहले लड़की देखना

अकसर लोगो मे शादी से पहले लड़की देखना बुरा समझा जाता हैं अलबत्ता उसकी फ़ोटो को देने मे कोई ऐतराज़ नही किया जाता| सवाल ये हैं के जिस फ़ोटो को लड़के को देखने के लिये दिया जाता हैं उस फ़ोटो के खीचने वाला मर्द क्या उस लड़की का महरम होता हैं| अकसरियत ऐसी हैं जो खासतौर से शादी के दिखाने के लिये लड़की का फ़ोटो किसी स्टूडियो मे खिचवाते हैं| जिस लड़के को उससे निकाह करना हैं उसके देखने पर तो पाबन्दी लगाई जाती हैं लेकिन जो गैर महरम हैं उसके सामने जाकर फ़ोटो खिचवाने मे कोई बुराई नही समझी जाती बल्कि लड़की को सजा सल्लललाहो अलेहे वसल्लमवार के खड़ा कर दिया जाता हैं| शरियत ने इस ताल्लुक से जो हुक्म दिया वो नीचे मौजूद हैं-

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाजब तुम मे से कोई शख्स किसी औरत को निकाह का पैगाम भेजे, अगर मुमकिन हो तो इसकी वो चीज़ देख लो जो इसके निकाह की दाई हैं(कद, कामत और हुस्न जमाल वगैराह)| हज़रत जाबिर रज़ि0 कहते हैं के मैने एक लड़की के लिये निकाह का पैगाम भेजा तो मैं इसके लिया छिपा करता था हत्ता के मैने इसे देख लिया जिस से मुझे इसके के साथ निकाह करने की रगबत हुई चुनांचे मैने इससे निकाह कर लिया| (अबू दाऊद)

हज़रत मुगीराह बिन शैबाह रज़ि0 से रिवायत हैं के इन्होने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायामैने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर होकर एक खातून का ज़िक्र किया के मै इससे निकाह के लिये पैगाम भेजने वाला हूं| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमायाजाकर इसे देख लो उम्मीद हैं तुम्हारे दरम्यान मुहब्बत पैदा हो जायेगी| लिहाज़ा मैने एक खातून अन्सारी के मां-बाप के यहा गया और इसके वालिदैन से इसका रिश्ता तलब किया और इन्हे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का इरशाद भी सुनाया| यू महसूस हुआ के इसके वालिदैन ने इस चीज़ को पसन्द नही किया|(के ये मर्द इनकी लड़की को देखे) लड़की पर्दे मे थी इसने ये बात चीत सुन ली चुनांचे इसने कहाअगर तुझे अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने देखने का हुक्म दिया हैं तो देख वरना मैं तुझे कसम देती हूं (के झूठा बहाना करके मुझे देखना) इसने गोया इस बात को बहुत बड़ा समझा(सुनते ही ऐतबार आया के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया होगा)| हज़रत मुगीराह रज़ि0 फ़रमाते हैं – (मै सच कह रहा था इसलिये) मैने इसे देख लिया| फ़िर मैने इससे निकाह कर लिया| फ़िर हज़रत मुगीरह ने इससे आहन्गी पैदा हो जाने का ज़िक्र फ़रमाया| (इब्ने माजा)

इन तमाम ह्दीस की रोशनी मे ये साबित होता हैं के निकाह से कब्ल लड़की देखना दुरुस्त हैं और लड़की के वालिदैन को भी इसे बुरा नही जानना चाहिये|

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