Tuesday, October 4, 2016

मुहर्रम

मुहर्रम



मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है,
यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्
का पहला महीना है।
पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में
इबादत की जाती है।
क्यूंकि ये तारिख इस्लामी इतिहास कि बहुत खास तारिख है.....रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई ताल्लुक़
नहीं है।. मुहर्रम की फजीलतों में से एक सबसे बड़ी फ़ज़ीलत है इस महीने का रोज़ा.


इस महीने की 9 और 10 तारीख को या फिर 10 या 11 तारीख को रोज़ा रखते हैं . इसकी मशहूर हदीसें निचे दी गयी हैं:-

1.
हज़रात अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि०) से रिवायत है कि जब रसूलल्लह सल्लल्लहु अलैही वसल्लम मदिने में तशरीफ़ लाए तो यहुद को देखा कि आशुरे के दिन का रोजा रख्ते है. लोगो से उन्होंने  पूछा  कि क्यो रोजा रखते है तो उन लोगों ने कहा कि ये वो दिन है जब अल्लाह तआला ने मूसा (अलैह०)और बनी इसराइल को फ़िरऔन पर ग़लबा (जीत) दिया, इसलिए आज हम रोजेदर हैं उनकी ताज़ीम के लिए.. तो नबी--करीम (स० अलैह०) ने फ़रमाया हम तुम से ज़्यदा दोस्त हैं और करीब हैं मूसा (अलैह०) के. फिर आप (स० अलैह०) ने सबको हुक्म दिया इस रोज़े का .
(
सहीह मुस्लिम: जिल्द 3, किताब 6(रोज़े के मसाइल), हदीस नंबर 2656)

2.हज़रात अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि०) से रिवायत है के जब मुहम्मद (स० अलैह०) ने 10वीं मुहर्रम का रोज़ा रखा और लोगों को हुक्म दिया तो लोगों ने कहा की या रसूलल्लाह (स० अलैह०)  ये दिन तो ऐसा है कि इसकी ताज़ीम यहूद--नसारा करते हैं,तो आप (स० अलैह०) ने फ़रमाया के जब अगला साल आएगा तो हम 9 का रोज़ा रखेंगे.आखिर अगला साल आने पाया की मुहम्मद (स० अलैह०) की वफ़ात हो गयी. (इसलिए हम मुस्लमान और १० दोनों का रोज़ा रखते हैं )
(
सहीह मुस्लिम: जिल्द 3, किताब 6(रोज़े के मसाइल), हदीस नंबर 2666 )

3.अबु क़तादा-अल-अंसारी (रजि०) से रिवायत है के नबी--करीम  सल्लल्लहु अलैही वसल्लम से आशूरा (10 मुहर्रम) के दिन के रोजे के बारे में  पूछा तो आप सल्लल्लहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया की ये गुज़रे हुए साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा है.
(
सहीह मुस्लिम: जिल्द 3, किताब 6(रोज़े के मसाइल), हदीस नंबर 2747 )

इसलिए जब हम आशूरा का रोज़ा रखें तो यहूद--नशरा की मुशबेहत करते हुए 10वीं मुहर्रम के साथ साथ 9वीं मुहर्रम का भी रोज़ा रखें.
इस तरह हदीसों से मुहर्रम के महीने में अगर कुछ साबित है तो वो है मुहर्रम का रोज़ा. बाकी जो भी चीज़ें हम देखते या सुनते हैं सरासर बिददत और शिर्क हैं जो हमे गुमराही की तरफ ले जाते हैं. तो हदीसों से कही मातम करने का ज़िक्र मिलता है ताजियादारी का और ही ढोल नगाड़े बजने और जुलूसे निकलने का ज़िक्र है. ये सरासर गुमराही है.

कुल मिलकर ताज़िया का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ ही नही है....लेकिन हमारे भाई बेहनो को इल्म नहीं है और इस वजह से इस काम को सवाब समझ कर करते है उन्हें हक़ीक़त
बताना भी हम सब का काम है...... 

कुरान फरमाता है: "और उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने
अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया." 
(
पारा: )
हदीस में है: जो (मैय्यत के ग़म में) गाल पीटे, गरीबन फाड़े,
और चीख पुकार मचाये वो हम में से नहीं" 
(
बुखारी)
रसूलअल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया
मेरी उम्मत में ऐसे लोग भी होंगे 
जो ढोल बाजो को
हलाल (जाइज़) कर देंगे
(
बुखारी)


ताजिया बनाना, बाजे ताशे के साथ उठाना, इस की ज्यारत करना, अदब करना, 
ताज़ीम करना, सलाम करना,
चूमना, बच्चो को दिखाना, 
हरे कपडे पहनना, 
फकीर बनाना, 
भिक मंगवाना, ये सब नाजायेज़ गुनाह है 

हिंदुस्तान में जिस तरह आम तौर में 
ताजियों का रिवाज़ है,
बेशक  नाजायेज़ बिद'अत है,

अल्लाह का फरमान हैकिसी ऐसी चीज की पैरवी ना करो {यानि उसके पीछे चलो, उसकी इत्तेबा ना करो } जिसका तुम्हें इल्म ना हो, यकीनन तुम्हारे कान, आँख, दिमाग {की कुव्वत जो अल्लाह ने तुमको अता की है } इसके बारे में तुमसे पूछताछ की जाएगी” 
{
सूरह बनी इस्राईल 17, आयत 36}
और नबी सल्ल० ने फ़रमायाइल्म सीखना हर मुसलमान मर्द-औरत पर फ़र्ज़ है
{
इब्ने माजा हदीस न० 224 }
यानि इतना इल्म जरुर हो कि क्या चीज शरियत में हलाल है क्या हराम और क्या अल्लाह को पसंद है क्या नापसंद, कौन से काम करना है और कौन से काम मना है और कौन से ऐसे काम है जिनको करने पर माफ़ी नहीं मिल सकती |
अब लोगों का क्या हाल है एक तरफ तो अपने आपको मुसलमान भी कहते है दूसरी तरफ काम इस्लाम के खिलाफ़ करते है और जब कोई उनको रोके तो उसको कहते है कि ये काम तो हम बाप दादा के ज़माने से कर रहे है,
यही वो बात है जिसको अल्लाह ने कुरआन में भी बता दिया सूरह बकरा की आयत 170 मेंऔर जब कहा जाये उनसे की पैरवी करो उसकी जो अल्लाह ने बताया है तो जवाब में कहते है कि हम तो चलेंगे उसी राह जिस पर हमारे बाप दादा चले, अगर उनके बाप दादा बेअक्ल हो और बेराह हो तब भी {यानि दीन की समझ बूझ ना हो तब भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे ? } 

मुहर्रम में ताजिया बनाना और बनावटी कब्रें बनाना, उन पर मन्नतें चढ़ाना और रबीउस्सानी, मेहंदी, रौशनी करना और उस पर मन्नतें चढ़ाना शिर्क है | ताजिये की ताजीम करना, उस पर चढ़ावा चढ़ाना, उस पर अर्जियां लटकाना, मर्सिया पढना, रोना चिल्लाना, सोग और मातम करना अपने बच्चों को फ़क़ीर बनाना ये सब बातें बिदअत और गुनाह की है | कुछ लोग मुहर्रम के दिनों में तो दिन भर रोटी पकाते है और झाड़ू देते है, कहते है दफ़न के बाद रोटी पकाई जाएगी | मुहर्रम के दस दिन तक कपड़े नहीं उतारते  ,माहे मुहर्रम में शादी नहीं करते | ये सब बातें बिदअत और गुनाह की है.

बिदअत खुराफात :
1 ईद मिलादुन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
2 आखिरी बुध
3 रज़ब के कुंडे
4 रुसुमाते मुहर्रम
5 ग्यारवी शरीफ
6 मज़ारों पर उर्स और मेले 
7तीजा,दसवा,बिसवॉ
8 क़ुरआन ख्वानी
9 चौथी खेलना
10 नयी दुल्हन का मुहर्रम शाबान का चाँद मायके जाकर देखना।
11 बीबी की फतेहा
12 बीबी की सेहनक
13 सोलह सय्यदों की कहानी
14 बड़े पीर साहब की हंसली पहनना
15 ,मह्फ़िले मीलाद
16 बारह इमामो के प्याले
17 मन्नत की बाली कड़ी पहनना
18 सुहागने खिलाना
19 क़ब्र पर अगरबत्ती जलाना
20 मज़ारात को ग़ुस्ल देना
21 क़ब्र पर अज़ान देना
22 मज़ारों पर गुम्बद बनाना
23 ख़त्म ख्वाज़गां
24 शबीना
25 शिरकिया नाट ख्वानी
26 सोग में काले कपडे पहनना
27 चिल्ले लगाना और चिल्ला-कशी करना
28 औरत मर्दो का अलग तरीके से नमाज़ पढ़ना
29 तिलावते क़ुरआन के बाद सदकल लाहुल अज़ीम कहना
30 अंगूठे चूमना
31 नमाज़,रोज़े वज़ू की ज़ुबानी निय्यत करना
32 खुद-साख्ता दुरुद,खुद-साख्ता सलाम पढ़ना
33 अंधी तक़लीद करना
34 पाकी कब्रे
35 ज्योतिष/काहिन के पास जाना
36 क़ब्रों पर क़ुरबानी नज़र (मन्नत)
37 रूह_रूहानी निकालना
38 तावीज़-गंडे देना बांधना
39 अरफा करना
40 रोज़कुशाई।
ये सब शिर्क और बिदअत को बढ़ावा देती है।



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