*जाएज़ वसीले की तीन क़िस्में*
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1⃣ *_पहला जाएज़ वसीला_*
(1) अपने नेक आमाल को वसीला बनाना
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देखें सहीह बुख़ारी :2215*

(1) अपने नेक आमाल को वसीला बनाना
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आप (स.अ.व.) ने फ़रमाया: कि तीन शख़्स कहीं बाहर जा रहे थे कि अचानक बारिश होने लगी, उन्होंने एक पहाड़ की ग़ार में जाकर पनाह ली, इत्तेफ़ाक़ से पहाड़ की एक चट्टान ऊपर से लुढ़की (और उस ग़ार के मुँह को बन्द कर दिया जिसमें यह तीनों पनाह लिए हुए थे) अब एक ने दूसरे से कहा: कि अपने सबसे अच्छे अमल का जो तुमने कभी किया हो नाम लेकर अल्लाह से दुआ करो
इस पर *उनमें में से एक ने यह दुआ की:* "ऐ अल्लाह! मेरे माँ-बाप बहुत ही बूढ़े थे, मैं बाहर ले जाकर अपने मवेशी चराता था फिर जब शाम को वापस आता तो उनका दूध निकालता और बर्तन में पहले अपने वालिदैन को पेश करता जब मेरे वालिदैन पी चुकते तो बच्चों को और अपनी बीवी को पिलाता, इत्तेफ़ाक़ से एक रात वापसी में देर हो गई और जब मैं घर लौटा तो वालिदैन सो चुके थे, उसने कहा: कि फिर मैंने पसन्द नहीं किया कि उन्हें जगाऊं, बच्चे मेरे क़दमों में भूखे पड़े रो रहे थे, मैं बराबर दूध का प्याला लिए वालिदैन के सामने इसी तरह खड़ा रहा यहाँ तक कि सुबह हो गई
ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मैंने यह काम सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो हमारे लिए इस चट्टान को हटाकर इतना तो रास्ता बना दे कि हम आसमान को तो देख सकें" नबी करीम (स.अ.व.) ने फ़रमाया चुनांचे वह पत्थर कुछ हट गया
*दूसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू ख़ूब जानता है कि मुझे अपने चचा की एक लड़की से इतनी ज़्यादा मुहब्बत थी जितनी एक मर्द को किसी औरत से हो सकती है, उस लड़की ने कहा: तुम मुझसे अपनी ख़्वाहिश उस वक़्त तक पूरी नहीं कर सकते जब तक मुझे सौ अशरफ़ी न दे दो मैंने उनके हासिल करने की कोशिश की, और आख़िर इतनी अशरफ़ी जमा कर लीं, फिर जब मैं उसकी दोनों रानों के दरमियान बैठा तो वह बोली: अल्लाह से डर और महर को नाजायज़ तरीक़े पर न तोड़ इस पर मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे छोड़ दिया,
अब अगर तेरे नज़दीक मैंने यह अमल तेरी रज़ा के लिये किया था तो हमारे लिए (निकलने का) रास्ता बना दे" नबी करीम (स.अ.व) ने फ़रमाया: चुनांचे वह पत्थर दो तिहाई हट गया
ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मैंने यह काम सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो हमारे लिए इस चट्टान को हटाकर इतना तो रास्ता बना दे कि हम आसमान को तो देख सकें" नबी करीम (स.अ.व.) ने फ़रमाया चुनांचे वह पत्थर कुछ हट गया
*दूसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू ख़ूब जानता है कि मुझे अपने चचा की एक लड़की से इतनी ज़्यादा मुहब्बत थी जितनी एक मर्द को किसी औरत से हो सकती है, उस लड़की ने कहा: तुम मुझसे अपनी ख़्वाहिश उस वक़्त तक पूरी नहीं कर सकते जब तक मुझे सौ अशरफ़ी न दे दो मैंने उनके हासिल करने की कोशिश की, और आख़िर इतनी अशरफ़ी जमा कर लीं, फिर जब मैं उसकी दोनों रानों के दरमियान बैठा तो वह बोली: अल्लाह से डर और महर को नाजायज़ तरीक़े पर न तोड़ इस पर मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे छोड़ दिया,
अब अगर तेरे नज़दीक मैंने यह अमल तेरी रज़ा के लिये किया था तो हमारे लिए (निकलने का) रास्ता बना दे" नबी करीम (स.अ.व) ने फ़रमाया: चुनांचे वह पत्थर दो तिहाई हट गया
*तीसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू जानता है कि मैंने एक मज़दूर से एक फ़रक़ जुआर पर काम कराया था जब मैंने उसकी मज़दूरी उसे दी तो उसने लेने से इंकार कर दिया, मैंने उस जुआर को लेकर बो दिया (फ़सल जब कटी तो उसमें इतनी जुआर पैदा हुई कि) उससे मैंने एक बैल और एक चरवाहा ख़रीद लिया, कुछ अरसे के बाद फिर उसने आकर मज़दूरी मांगी, कि ऐ अल्लाह के बन्दे! मुझे मेरा हक़ दे दो मैंने कहा: उस बैल और उस चरवाहे के पास जाओ कि यह तुम्हारी ही मिल्कियत है उसने कहा: कि मुझसे मज़ाक़ करते हो, मैंने कहा "मैं मज़ाक़ नहीं करता" वाक़ई यह तुम्हारे हैं
तो ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक यह काम मैंने सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो यहाँ हमारे लिए (इस चट्टान को हटाकर) रास्ता बना दे चुनांचे वह ग़ार पूरा खुल गया और वह तीनों शख़्स बाहर आ गए
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तो ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक यह काम मैंने सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो यहाँ हमारे लिए (इस चट्टान को हटाकर) रास्ता बना दे चुनांचे वह ग़ार पूरा खुल गया और वह तीनों शख़्स बाहर आ गए
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2⃣ *_दूसरा जाएज़ वसीला_*
(2) दुआ में अल्लाह के प्यारे प्यारे नामों का वसीला
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देखें सूरह ऐराफ़ :180*

और अच्छे-अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं सो उन नामों से अल्लाह को पुकारो
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(2) दुआ में अल्लाह के प्यारे प्यारे नामों का वसीला
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और अच्छे-अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं सो उन नामों से अल्लाह को पुकारो
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*_3⃣तीसरा जाएज़ वसीला_*
(3) किसी ज़िन्दा नेक शख़्स से दुआ करवाई जाए
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देखें सहीह बुख़ारी :1010*

(3) किसी ज़िन्दा नेक शख़्स से दुआ करवाई जाए
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जब कभी उमर (रज़ि) के ज़माने में क़हत (सूखा) पड़ता तो उमर (रज़ि) अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब (रज़ि) के वसीले से दुआ करते और फ़रमाते: ऐ अल्लाह! पहले हम तेरे पास अपने नबी करीम (स.अ.व) का वसीला लाया करते थे तो तू पानी बरसाता था अब हम अपने नबी करीम (स.अ.व) के चचा का वसीला बनाते हैं तो, तू हम पर पानी बरसा अनस (रज़ि) फ़रमाते हैं कि बारिश बरसने लगती थी
*नोट:-*


यह हदीस इस बात की वाज़ह दलील है कि मुसलमान रसूलुल्लाह (स.अ.व) की ज़िन्दगी में बारिश की दुआ करवाने की ख़ातिर रसूलुल्लाह (स.अ.व) का वसीला पकड़ते थे मगर जब आप (स.अ.व) अपने मालिक ए हक़ीक़ी से जा मिले तो कभी आपसे दुआ की दरख़्वास्त नहीं की जबकि रसूलुल्लाह (स.अ.व) की क़ब्र ए मुबारक उन लोगों के पास थी बल्कि रसूलुल्लाह (स.अ.व) के चचा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) से दुआ की दरख़्वास्त करते और वह उस वक़्त ज़िन्दा थे लिहाज़ा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) उन मुसलमानों के लिए दुआ करते
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*नोट:-*
यह हदीस इस बात की वाज़ह दलील है कि मुसलमान रसूलुल्लाह (स.अ.व) की ज़िन्दगी में बारिश की दुआ करवाने की ख़ातिर रसूलुल्लाह (स.अ.व) का वसीला पकड़ते थे मगर जब आप (स.अ.व) अपने मालिक ए हक़ीक़ी से जा मिले तो कभी आपसे दुआ की दरख़्वास्त नहीं की जबकि रसूलुल्लाह (स.अ.व) की क़ब्र ए मुबारक उन लोगों के पास थी बल्कि रसूलुल्लाह (स.अ.व) के चचा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) से दुआ की दरख़्वास्त करते और वह उस वक़्त ज़िन्दा थे लिहाज़ा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) उन मुसलमानों के लिए दुआ करते
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*नाजायज़ वसीला*
जबकि वसीले की जो शक्ल हमारे मआशरे में राएज है वह बिल्कुल बातिल और हराम है और मुशरिकीन ए अरब भी इसी क़िस्म के वसीले के क़ायल थे
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देखें सूरह ज़ुमर :03*

जबकि वसीले की जो शक्ल हमारे मआशरे में राएज है वह बिल्कुल बातिल और हराम है और मुशरिकीन ए अरब भी इसी क़िस्म के वसीले के क़ायल थे
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ख़बरदार! अल्लाह तआला ही के लिए ख़ालिस इबादत करना है और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बना रखे हैं (और अपने इस फ़ेल की तौजी यह करते हैं) कि हम इनको सिर्फ़ इसलिए पुकारते हैं कि यह (बुज़ुर्ग) अल्लाह की नज़दीकी के मरतबे तक हमारी रसाई करा दें यह लोग जिस बारे में इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं इसका सच्चा फ़ैसला अल्लाह (ख़ुद) करेगा झूठे और नाशुक्रे (लोगों) को अल्लाह राह नहीं दिखाता
*अल्लाह तआला हमें जाएज़ वसीले की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए*
*_आमीन_*
*_आमीन_*
आमीन
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