Quraan Aur Hadees
Nabi Kareem (Sallallaho Alihi Wasallam)ne Sahaba se qitaab karte hue farmayaa.k" main tum me do cheezen chorey jaaraha hon agar tumne isey mazbooti se pakde rakha to kabhi gumrah na hoge aur wo hai kitab Allah aur Sunnt e Rasoolilah.( sahih muslim-chapter hujjat un nabi(s) jild 1 page no.397 )
Tuesday, April 13, 2021
8 तरावीह Quraan aur sahi Hadees
Tuesday, October 6, 2020
Astghfar
1. रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स दिन में 100 बार सुबहान अल्लाहि वा बिहम्दिही कहेगा उसके सारे गुनाह मिटा दिए जायेगे चाहे वो समुन्दर के झाग के बराबर ही क्यों ना हों
सही मुस्लिम, जिल्द 6,6842
2. Hadith: Anas (RaziAllahu Anhu) se riwayat hai ki, Rasool’Allah (ﷺ) ne farmaya:
“Jo Astghfar karne ko apne upar lazim karega tou Allah Subhanahu usko har tangi se nikalne ka ek raasta ata farmayega aur har gham se nijat dega aur aisi jagah se rozi ata farmayega jahan se usko guman bhi nahi hoga.”
📕 Sunan Abu Dawood, 1505
3. Astaghfar ki Ahmiyat:
Hadees: Rasool’Allah (Sallallahu Alaihay Wasallam) ne farmaya: “Main Allah ki bargah me Astaghfar (Muafi Manga) karta hoon aur uski taraf ruju karta hoon din me 70 baar se bhi jyada.”
📕 Bukhari, Vol:8, Book:75, Hadith 319
Hum sab jante hai ke Ambiya (Alaihi Salato Salam) Gunaho se paak hote hai, aur Allah ke Nabi (Salallahu Alaihi Wasallam) tou bakhshe bakhshaye hai, lekin fir Aap (ﷺ) apni Ummat ko tarbiyat dene ke liye khud Astagfar ki qasrat kiya karte they. lihaja hum par tou lazim hai ke hume jyada se jyada Astaghfar karna hai.
10 Baar Surah ikhlas( Kul hu Allah uHad) padhne se Jannat mein 1 ghar tayyar ho jata hai
1 baar Surah Yaseen padhne se 10 baar mukammal Quraan shareef padhne ke barabar sabab milta hai
Monday, October 2, 2017
मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ*
```रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे
पढ़ते हुए देखते हो. ” ```
*[बुख़ारी ह० 631]*
*क़याम का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना```
*[इब्न माजा ह० 803 ]*
◾ ```अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना.```
*[अबू दाऊद ह० 662]*
◾ ```फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना```
*[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861]*
```या कानों तक उठाना```
*[मुस्लिम ह० 865]*
◾``` फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना ```
*[मुस्नद अहमद ह० 22313]*
```दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर```
*[बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377]*
```ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है ```
*[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]*
```दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर
```
*[अबू दाऊद ह० 727, नसाई ह० 890]*
```साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है```
*[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 769]*
◾ ```फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना```
*[मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900]*
```इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.```
◾``` फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ ```
*[क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589]*
```और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499]*
◾ ```फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892]*
```जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.```
*[बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874]*
◾ ```जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना ```
*[अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 ]*
◾ ```फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[मुस्लिम ह० 894]*
◾ ```पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859]*
```और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना. ```
*[मुस्लिम ह० 1013, 1014]*
*रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना) ```
*[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865]*
◾ ```और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना. ```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731]*
◾ ```सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो.```
*[अबू दाऊद ह० 730]*
◾ ```और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना ```
*[अबू दाऊद ह० 734]*
◾``` रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना.```
*[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए``` *[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*
*क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना```
*[बुख़ारी ह० 735, 789]*
◾``` ‘रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना.```
*[बुख़ारी ह० 799.]*
*सज्दा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना. ```
*[बुख़ारी ह० 812]*
◾ ```सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना ```
*[अबू दाऊद ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627]*
```नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं.```
*[देखिये अबू दाऊद ह० 838]*
◾ ```सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना.```
*[अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105]*
◾ ```सर को दोनों हाथों के बीच रखना```
*[अबू दाऊद ह० 726]*
◾ ```और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना.```
*[नसाई ह० 890]*
◾ ```हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227]*
◾ ```सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[बुख़ारी ह० 828]*
◾ ```सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना. ```
*[बुख़ारी ह० 822]*
◾ ```सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना```
*[सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116]*
◾ ```और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना.```
*[नसाई ह० 1102]*
```नोट: रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” ```
*[सुनन दार क़ुत्नी 1/348]*
◾ ```सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’```
*[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना```
*[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*
*जलसा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना.``` *[बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730.]*
◾ ```दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरल ’ ```
*[अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897]*
◾ ```इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’ ```
*[अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850]*
◾ ```दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना.``` *[बुख़ारी ह० 757]* ```(इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)```
◾ ```पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना.```
*[बुख़ारी ह० 823, 824]*
*तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना. ```
*[मुस्लिम ह० 1308, 1310]*
◾ ```फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना.```
*[मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991]*
◾ ```और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना. ```
*[नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912]*
◾ ```पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है.```
*[नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204]*
◾ ```लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है. ```
*[मुस्नद अहमद ह० 4382]*
◾``` (2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना.```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 730]* ```(इसको तवर्रुक कहते हैं )```
◾ ```तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना.```
*[बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908]*
◾ ```दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए.```
*[बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897]*
◾ ```इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना. ```
*[बुख़ारी ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295]*
```नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें```
💐💐💐
Sunday, September 24, 2017
इमाम अबु हनीफा रह। ने फरमाया...
इमाम अबु हनीफा रह। ने फरमाया: -
1.लोग हमेशा बेहतरी में रहेगे जब तक उनमे कोई हदीस तलब करने वाला रहेगा।
मुकदमा आलम गिरी जिल्द 1, सफा -43
2.छोड़ दो मेरे कौल हदीस के सामने
शरह विकाया - सफा 9
3 .जब सही हदीस मिल जाएं वही मेरा मजहब है।
मुकदमा आलमगिरी जिल्द 1, सफा -120
4 .दीन में राय से बचो, सुन्नत के ताबे रहो और जो इससे बाहर गुमराही है।
मुकदमा आलम गीरी जिल्द 1, सफा -43
5 .किताब व सुन्नत में सब कुछ मौजूद है। ~ मुकदमा आलम गीरी जिल्द 1, सफा -30
6.हदीस का रद्द करने वाला गुमराह है। मुकदमा हिदाया जिल्द 1, सफा -30)
7 .हदीस इमाम के कौल पर मुकद्दम है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -391 व 936
8 .जो हदीस जईफ़ है उस पर अमल न किया जायेगा।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -60
9 .इमाम आजम जब बग़दाद में वारिद हुए तो एक अहले हदीस ने सवाल किया क़ि रतब (गीली खजुर) का बै य (खरीद फ़रोख्त) तमर (सुखी खजुर) से जायज है या नहीं।
दुर्रे मुख्तार जिल्द जिल्द 3, सफा -130
साबित हुआ की अहले हदीस का वजुद इमाम आजम (अबु हनीफा रह।) के दौर में था।
10 .इजमा है कि अहले हदीस अहले सुन्नत वल जमात से है और हक़ पर है उनकी इक्तिदा हनफ़ी को जायज है।
हिदाया जिल्द 1, सफा -3 व 12
11 .आफत तक़लीद से पड़ी है।
दूर्र मुख्तार जिल्द 1, सफा -50 हिदाया जिल्द 1, सफा -3 व 12
12 .फ़सअलू अहलज जिक्रे इन कुन्तुम ला तअलमून से मुराद कुरआन व हदीस का हुक्म दरियाफ्त करना है। लोगों की बातें मान लेने का हुक्म नहीं है।
मुकदमा आलमगीर जिल्द 1, सफा -13
13 .जो नबियों की किसी सुन्नत को ना पसंद करे वह काफ़िर है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द -2, सफा -553
14 .जो सुन्नत को हकीर जाने वो काफिर है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -128, हिदाया जिल्द 1, सफा -541
15 .यहूदी व नसारा अपने मौलवी और दरवेशों का कहना मानते थे इसलिए अल्लाह ने उन्हें मुशरिक फ़रमाया मौमिन को हुक्म किया कि लोगों के कौल मत पूछो बल्कि ये पूछो कि अल्लाह का हुक्म क्या है।
मुकदमा आलमगीर जिल्द 1, सफा -13
16 .जो सुन्नत को हलकी जानकार तर्क कर दे वह काफ़िर है।
मुकदमा हिदाया जिल्द 1, सफा -77
17 .नीयत ज़बान से करना बिदअत है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -49, हिदाया जिल्द 1, सफा -22
18 .गर्दन का मसह बिदअत है और इसकी हदीस मौजू है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -58
19 .नाफ़ के नीचे हाथ बांधने की हदीस बइत्तेफ़ाक़ अइम्मा मुहद्दसीन जईफ़ है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -350
🔗20 .सीने पर हाथ बांधने की हदीस बइत्तेफाक अइम्मा मुहद्दसीन सही है। शरह विकाया सफा -93
🔗21 .इमाम के पीछे सूरह फातिहा न पढ़ने की हदीस जईफ़ है।
~ शरह विकाया 108 व 109
22 .हदीस आमीन बिजहर (बा आवाज़) की साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -365, शरह विकाया, सफा -97
23.तस्दीक रफेयदेन रूकू के पहले व रुकु के बाद।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -384
24 .बेहकी की रिवायत में इब्ने उमर रजि। से आखिर में है कि यही आप सल्ल। की नमाज रफेयदेंन रही यहाँ तक क़ि अल्लाह ताला से जा मिले.यह हदीस सही सनद से है।
हिदाया जिल्द 1, सफा -384
25 .रफेयदेन न करने की हदीस जईफ़ है | ~ शरह विकाया, सफा -102
26 .हक़ यह है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) से रफेयदेन सही साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -386
27 .इंन्कसारी के लिए सर खोलकर नमाज पढ़ना दुरुस्त है।
~ दुर्र मुख्तार जिल्द 1, सफा -299
28 .तरावीह 20 रकात की हदीस जईफ़ है।
~ दुर्रे मुख्तार जिल्द -1 सफा -326, हिदाया जिल्द -1 सफा 563, शरह, विकाया सफा -133
29 .तरावीह आठ 8 रकअत की हदीस सही है।
~ शरह विकाया सफा -123
30 .तरावीह सही हदीस से मय वित्र के 11 रकअत साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -563, शरह विकाया सफा -133
31 .नमाजे जनाजा में अलहम्दो पढ़ना अक्सर आलिमो के नजदीक जायज है।
~ दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -411
32 .मुसाफा एक हाथ से करना अक्सर रिवायत सहीहा से साबित है।
हिदाया जिल्द 4, सफा -293
33.अत्तहियात में ऊँगली से हरकत देना भी जायज है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -396
👉🏻🌹अहले हदीस का पैग़ाम पुरी इंसानियत के नाम🌴🌴
Sunday, September 3, 2017
QURAN WA SUNNAT KI PAIRWI KAISE KI JAAYE
Tuesday, August 15, 2017
कब्रों पर इमारतें, फूल और चिराग
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
'अल्लाह यहूदियों पर, जिन्होंने अपने नबियों की कब्रों को सज्दागाह बना लिया लानत भेजता है'।
{इसलिये आपकी कब्र खुली नहीं रखी गई कि कहीं मुसलमान पूजने न लग जाये ।}
[बुखारी 1555]
"खबरदार हो कि तुमसे पहली उम्मतों ने अपने और नेक मुर्दो की कब्रों को मस्जिद बना लिया था । तुम हरगिज कब्रों को मस्जिद न बनाना, मै तुमकों इससे मना करता हूँ ।"
[मुस्लिम 488]
[इब्ने माजा 1581]
[ इब्ने माजा 1582]
[ इब्ने माजा 1583]
[तिर्मिजी 956, सही मुस्लिम 973, अबूदाऊद 1468]
हुजूर सल्ल. के नामें मुबारक पर और हुजूर सल्ल. के जितने भी सहाबा किराम रजि. थे उनमें से किसी के नाम से पहले अलहाज्ज नहीं लिखा गया । इमामों के नाम पर मुहद्दिसीने किराम के नाम पर कहीं भी अलहाज्ज लिखा हुआ नजर नहीं आता लेकिन हमारे हिन्दुस्तान में एक जाहिल की कब्र पर लिखा जाता है । आलिम हो या जाहिल किसी की कब्र पर लिखकर लगवाना जायज नहीं ।
[ तिर्मिजी 954, सही मुस्लिम 972, अबूदाऊद 1461, मिश्कात 1598]
1. एक तो उनमें से पेशाब से बचता न था ।
2. दूसरा चुगलखोरी करता था ।
फिर आपने एक तर शाख ली और उसे चीर कर दो टुकड़े कर दिये और हर कब्र पर एक टुकडा गाड दिया ।
सहाबा रजि. ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल. ! यह आपने क्यों किया ?
फरमाया उम्मीद है कि जबतक ये दोनों लकडियां सूख न जाएं अजाब उन पर कम रहेगा ।
[ बुखारी 211, सही मुस्लिम 250 ]
[सही बुखारी 1482, तिर्मिजी 775]
हजरत उमर रजि. का इन लफ्जों से मकसद यह था कि कहीं अगले जमाने के लोग सिर्फ पत्थर की ताजीम व तक्रीम न करने लगें और उसको नफा या नुकसान का मालीक न समझ बैठे और उसका चूमना देखकर लोग किसी फित्ने में मुब्तला न हो जायें ।
[अबूदाऊद 1479, तिर्मिजी 280, मिश्कात 682,]
आपने किसी मस्जिद में सोन या चांदी के दरवाज़े नहीं देखे होंगे, मगर कुछ दरगाहों में आपने देखे होंगे, कहीं कहीं तो सोने चांदी की जालियां होती है और कहीं कहीं तो दरवाजे भी बने हुये देखें होंगे। जब कब्रे सजायी जाती है तो उन उन कब्रों की इज्जत और अदब व ताजीम जामा मस्जिदों से भी बढ जाती है मस्जिदे नबवी सल्ल. से भी बढ जाती है और काबा शरीफ से भी बढ जाती है । आप कहीं भी किसी मुल्क में, किसी कस्बे या शहर में, किसी मस्जिद में नमाज पढने जायेंगे तो आप अपने जूते मस्जिद में ले जाना चाहे तो ले जा सकते है और एहतियात से रख सकते है यहाँ तक कि जो लोग हज को जाते है वे मस्जिदे नबवी सल्ल. में भी अपनी जूतिंया रख सकते है और काबा शरीफ के अडोस पडौस में आप जहां चाहे अपनी जूतियां रख सकते है लेकिन आप अपनी जूतियां दरगाह में नहीं ले जा सकते क्योंकि अब उस दरगाह का मर्तबा मस्जिदे नबवी सल्ल. से और काबा शरीफ से भी बढ गया है ।
जब तुम में से कोई आदमी नमाज पढे तो अपनी जूतियों को दायें बायें न रखे इसलिये कि बायें जानिब रखना दूसरे के दायें जानिब रखना होगा, बल्कि जूतियों को पांव के दर्मियान रख लें ।
[अबूदाऊद 649, इब्ने माजा 1452]
Sunday, January 15, 2017
जाएज़ वसीले की तीन क़िस्में
------------------------------
(1) अपने नेक आमाल को वसीला बनाना
*
ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मैंने यह काम सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो हमारे लिए इस चट्टान को हटाकर इतना तो रास्ता बना दे कि हम आसमान को तो देख सकें" नबी करीम (स.अ.व.) ने फ़रमाया चुनांचे वह पत्थर कुछ हट गया
*दूसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू ख़ूब जानता है कि मुझे अपने चचा की एक लड़की से इतनी ज़्यादा मुहब्बत थी जितनी एक मर्द को किसी औरत से हो सकती है, उस लड़की ने कहा: तुम मुझसे अपनी ख़्वाहिश उस वक़्त तक पूरी नहीं कर सकते जब तक मुझे सौ अशरफ़ी न दे दो मैंने उनके हासिल करने की कोशिश की, और आख़िर इतनी अशरफ़ी जमा कर लीं, फिर जब मैं उसकी दोनों रानों के दरमियान बैठा तो वह बोली: अल्लाह से डर और महर को नाजायज़ तरीक़े पर न तोड़ इस पर मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे छोड़ दिया,
अब अगर तेरे नज़दीक मैंने यह अमल तेरी रज़ा के लिये किया था तो हमारे लिए (निकलने का) रास्ता बना दे" नबी करीम (स.अ.व) ने फ़रमाया: चुनांचे वह पत्थर दो तिहाई हट गया
तो ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक यह काम मैंने सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो यहाँ हमारे लिए (इस चट्टान को हटाकर) रास्ता बना दे चुनांचे वह ग़ार पूरा खुल गया और वह तीनों शख़्स बाहर आ गए
*_____________________________
(2) दुआ में अल्लाह के प्यारे प्यारे नामों का वसीला
*
और अच्छे-अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं सो उन नामों से अल्लाह को पुकारो
*_____________________________
(3) किसी ज़िन्दा नेक शख़्स से दुआ करवाई जाए
*
*नोट:-*
यह हदीस इस बात की वाज़ह दलील है कि मुसलमान रसूलुल्लाह (स.अ.व) की ज़िन्दगी में बारिश की दुआ करवाने की ख़ातिर रसूलुल्लाह (स.अ.व) का वसीला पकड़ते थे मगर जब आप (स.अ.व) अपने मालिक ए हक़ीक़ी से जा मिले तो कभी आपसे दुआ की दरख़्वास्त नहीं की जबकि रसूलुल्लाह (स.अ.व) की क़ब्र ए मुबारक उन लोगों के पास थी बल्कि रसूलुल्लाह (स.अ.व) के चचा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) से दुआ की दरख़्वास्त करते और वह उस वक़्त ज़िन्दा थे लिहाज़ा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) उन मुसलमानों के लिए दुआ करते
*_____________________________
जबकि वसीले की जो शक्ल हमारे मआशरे में राएज है वह बिल्कुल बातिल और हराम है और मुशरिकीन ए अरब भी इसी क़िस्म के वसीले के क़ायल थे
*
*_आमीन_*