Tuesday, April 13, 2021

8 तरावीह Quraan aur sahi Hadees

रमजान में कियाम यानी तरावीह पढ़ने की फजीलत का बयान..👇

अबू हुरैरा रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है उन्होंने कहाः मैंने नबी ﷺ को रमजान की यह फजीलत बयान करते सुना कि जो शख्स भी ईमान और सवाब की नियत से रमजान में कियाम करता है उसके पिछले गुनाह बख्श दिये जाते हैं

#Sahih_Bukhari_Hadees_No_2008

अबू हुरैरा रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है उन्होंने कहाः मैंने नबी ﷺ को रमजान की यह फजीलत बयान करते सुना कि जो शख्स भी ईमान और सवाब की नियत से रमजान में कियाम करता है उसके पिछले गुनाह बख्श दिये जाते हैं

इब्ने शिहाब जहरी ने कहाः फिर नबी करीम ﷺ की वफात हो गई और लोगों का यही हाल रहा कि अकेले-अकेले और जमाअत से तरावीह पढ़ते थे इसके बाद अबू बक्र रज़िअल्लाहु अन्हु के खिलाफत के जमाने में और उमर रज़िअल्लाहु अन्हु के खिलाफत के सुरुआत में ऐसा ही होता रहा

#Sahih_Bukhari_Hadees_No_2009

अब्दुर्रहमान अब्दुल कारी बयान करते हैं कि मैं एक मर्तबा उमर बिन खत्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु के साथ रमजान की एक रात को मस्जिद में गया तो लोगों को अलग-अलग नमाज पढ़ते हुये देखा। कहीं कोई अकेला पढ़ रहा है तो कुछ लोग किसी के पीछे पढ़ रहे है यह हालत देखकर उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने कहाः अगर मैं इन सब लोगों को एक कारी के पीछे जमाकर दूँ तो यह ज्यादा बेहतर होगा चुनान्चे उन्होंने पक्का इरादा कर के सबको उबय्यि बिन कअब रज़िअल्लाहु अन्हु के पीछे इकट्ठा कर दिया फिर मैं उनके साथ दूसरी रात गया तो क्या देखा कि लोग अपने कारी के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं
उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने यह देखकर कहाः यह नया तरीका बेहतर और उचित है और रात का वह हिस्सा जिसमें यह लोग सो जाते हैं उस हिस्सा से बेहतर और अफजल है जिसमें यह नमाज पढ़ते है । उमर रज़िअल्लाहु अन्हु की मुराद रात के आखिरी पहर की फजीलत से थी क्योंकि लोग यह नमाज़ रात के सुरुआत ही में पढ़ लेते थे

#Sahih_Bukhari_Hadees_No_2010

आयशा सिद्दीका रज़िअल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार रमजान में आधी रात को निकले और मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ी और चंद सहाबा ने भी आपके पीछे नमाज़ पढ़ी सुबह को सहाबा ने जब एक दूसरे से इसका जिक्र किया तो दूसरी रात को लोग पहले से अधिक जमा हो गये और आपके साथ नमाज़ पढ़ी दूसरी सुबह को लोगों ने और अधिक जिक्र किया तो तीसरी रात और भी अधिक लोग जमा हो गये उस रात भी आपने नमाज़ पढ़ी और लोगों ने भी आपके साथ नमाज़ पढ़ी और चौथी रात को तो मस्जिद नमाजियों से तंग हो गई लेकिन उस रात आप ﷺ बाहर ही नहीं निकले बल्कि सुबह को फज़्र की नमाज़ के लिए निकले और फज्र की नमाज अदा करने के बाद लोगों की तरफ मुंह कर के त-शहहुद पढ़ा और फरमाया: अम्मा बाद !

मुझे इस बात की जानकारी थी कि आप लोग इकट्ठा है लेकिन मुझे इस बात का डर हुआ कि कहीं यह नमाज़ आप लोगों पर फर्ज़ न कर दी जाये और आप हजरात इसके अदा करने से आजिज़ हो जाये इसलिए मैं मस्जिद में आकर आप लोगों की इमामत नहीं कराई और अकेले ही घर में पढ़ ली

चुनान्चे आपके इंतकाल के बाद भी यही हालत बाकी रही

#Sahih_Bukhari_Hadees_No_2012

अबू सलमा बिन अब्दुर्रहमान रज़िअल्लाहु ने आयशा रज़िअल्लाहु अन्हा से पूछा कि नबी ﷺ रमजान में कितनी रकअतें पढ़ते थे ? उन्होने कहाः रमजान हो या कोई और महीना आप ﷺ ग्यारह रकअतो से अधिक नहीं पढ़ते!

पहले चार रकअतें पढ़ते थे उनकी खूबी और लंबाई का हाल मत पूछो फिर चार रकअतें उनकी खूबी और लंबाई का हाल मत पूछो। फिर तीन रकअतें पढ़ते थे?

मैंने एक बार आप ﷺ से पूछा ऐ अल्लाह के रसूल क्या आप वित्र पढ़ने से पहले सो जाते है ? आप ﷺ ने फरमाया आखें तो सो जाती है मगर दिल नहीं सोता

#Sahih_Bukhari_Hadees_No_2013

Tuesday, October 6, 2020

Astghfar

1.  रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स दिन में 100 बार सुबहान अल्लाहि वा बिहम्दिही कहेगा उसके सारे गुनाह मिटा दिए जायेगे चाहे वो समुन्दर के झाग के बराबर ही क्यों ना हों 

सही मुस्लिम, जिल्द 6,6842


2. Hadith: Anas (RaziAllahu Anhu) se riwayat hai ki, Rasool’Allah (ﷺ) ne farmaya:

“Jo Astghfar karne ko apne upar lazim karega tou Allah Subhanahu usko har tangi se nikalne ka ek raasta ata farmayega aur har gham se nijat dega aur aisi jagah se rozi ata farmayega jahan se usko guman bhi nahi hoga.”

📕 Sunan Abu Dawood, 1505






3. Astaghfar ki Ahmiyat:

Hadees: Rasool’Allah (Sallallahu Alaihay Wasallam) ne farmaya: “Main Allah ki bargah me Astaghfar (Muafi Manga) karta hoon aur uski taraf ruju karta hoon din me 70 baar se bhi jyada.”

📕 Bukhari, Vol:8, Book:75, Hadith 319



Hum sab jante hai ke Ambiya (Alaihi Salato Salam) Gunaho se paak hote hai, aur Allah ke Nabi (Salallahu Alaihi Wasallam) tou bakhshe bakhshaye hai, lekin fir Aap  (ﷺ) apni Ummat ko tarbiyat dene ke liye khud Astagfar ki qasrat kiya karte they. lihaja hum par tou lazim hai ke hume jyada se jyada Astaghfar karna hai.


10 Baar Surah ikhlas( Kul hu Allah uHad) padhne se Jannat mein 1 ghar tayyar ho jata hai


1 baar Surah Yaseen padhne se 10 baar mukammal Quraan shareef padhne ke barabar sabab milta hai


Monday, October 2, 2017

मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़

```मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़```
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ*

```रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे
 पढ़ते हुए देखते हो. ” ```
*[बुख़ारी ह० 631]*

*क़याम का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना```
*[इब्न माजा ह० 803 ]*

◾ ```अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना.```
*[अबू दाऊद ह० 662]*

◾ ```फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना```
*[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861]*

```या कानों तक उठाना```
 *[मुस्लिम ह० 865]*

◾``` फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना ```
*[मुस्नद अहमद ह० 22313]*

```दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर```
*[बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377]*

```ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है ```
*[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]*

```दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर
```
*[अबू दाऊद  ह० 727, नसाई  ह० 890]*

```साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है```
*[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस  पेज 769]*

◾ ```फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना```
 *[मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900]*

```इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.```

◾``` फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ ```
*[क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589]*

```और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499]*

◾ ```फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892]*

```जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.```
*[बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874]*

◾ ```जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना ```
*[अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 ]*

◾ ```फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[मुस्लिम ह० 894]*

◾ ```पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859]*

```और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना. ```
*[मुस्लिम ह० 1013, 1014]*

*रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना) ```
*[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865]*

◾ ```और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना. ```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731]*

◾ ```सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो.```
 *[अबू दाऊद  ह० 730]*

◾ ```और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना ```
*[अबू दाऊद  ह० 734]*

◾``` रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना.```
 *[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए``` *[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*

*क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना```
*[बुख़ारी ह० 735, 789]*

◾``` ‘रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना.```
*[बुख़ारी ह० 799.]*

*सज्दा का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना. ```
*[बुख़ारी  ह० 812]*

◾ ```सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना ```
*[अबू दाऊद  ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627]*

```नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं.```
 *[देखिये अबू दाऊद ह० 838]*

◾ ```सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना.```
*[अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105]*

◾ ```सर को दोनों हाथों के बीच रखना```
*[अबू दाऊद ह० 726]*

◾ ```और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना.```
*[नसाई ह० 890]*

◾ ```हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227]*

◾ ```सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[बुख़ारी ह० 828]*

◾ ```सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना. ```
*[बुख़ारी ह० 822]*

◾ ```सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना```
*[सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116]*

◾ ```और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना.```
*[नसाई ह० 1102]*

```नोट: रसूलुल्लाह ﷺ  ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” ```
*[सुनन दार क़ुत्नी 1/348]*

◾ ```सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’```
*[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना```
*[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*

*जलसा का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना.``` *[बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730.]*

◾ ```दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरल ’ ```
*[अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897]*

◾ ```इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’ ```
*[अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850]*

◾ ```दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना.``` *[बुख़ारी ह० 757]* ```(इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)```

◾ ```पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना.```
 *[बुख़ारी ह० 823, 824]*

*तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा*

◾ ```तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना. ```
*[मुस्लिम  ह० 1308, 1310]*

◾ ```फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना.```
*[मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991]*

◾ ```और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना. ```
*[नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912]*

◾ ```पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है.```
*[नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204]*

◾ ```लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है. ```
*[मुस्नद अहमद ह० 4382]*

 ◾``` (2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना.```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद  ह० 730]* ```(इसको तवर्रुक कहते हैं )```

◾ ```तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना.```
*[बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908]*

◾ ```दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए.```
*[बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897]*

◾ ```इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना. ```
*[बुख़ारी  ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295]*

```नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें```
                 💐💐💐

Sunday, September 24, 2017

इमाम अबु हनीफा रह। ने फरमाया...

👇🙏🌹
इमाम अबु हनीफा रह। ने फरमाया: -

1.लोग हमेशा बेहतरी में रहेगे जब तक उनमे कोई हदीस तलब करने वाला रहेगा।
मुकदमा आलम गिरी जिल्द 1, सफा -43

2.छोड़ दो मेरे कौल हदीस के सामने
शरह विकाया - सफा 9

3 .जब सही हदीस मिल जाएं वही मेरा मजहब है।
मुकदमा आलमगिरी जिल्द 1, सफा -120

4 .दीन में राय से बचो, सुन्नत के ताबे रहो और जो इससे बाहर गुमराही है।
मुकदमा आलम गीरी जिल्द 1, सफा -43

5 .किताब व सुन्नत में सब कुछ मौजूद है। ~ मुकदमा आलम गीरी जिल्द 1, सफा -30

6.हदीस का रद्द करने वाला गुमराह है। मुकदमा हिदाया जिल्द 1, सफा -30)

7 .हदीस इमाम के कौल पर मुकद्दम है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -391 व 936

8 .जो हदीस जईफ़ है उस पर अमल न किया जायेगा।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -60

9 .इमाम आजम जब बग़दाद में वारिद हुए तो एक अहले हदीस ने सवाल किया क़ि रतब (गीली खजुर) का बै य (खरीद फ़रोख्त) तमर (सुखी खजुर) से जायज है या नहीं।
दुर्रे मुख्तार जिल्द जिल्द 3, सफा -130

साबित हुआ की अहले हदीस का वजुद इमाम आजम (अबु हनीफा रह।) के दौर में था।

10 .इजमा है कि अहले हदीस अहले सुन्नत वल जमात से है और हक़ पर है उनकी इक्तिदा हनफ़ी को जायज है।
हिदाया जिल्द 1, सफा -3 व 12

11 .आफत तक़लीद से पड़ी है।
दूर्र मुख्तार जिल्द 1, सफा -50 हिदाया जिल्द 1, सफा -3 व 12

12 .फ़सअलू अहलज जिक्रे इन कुन्तुम ला तअलमून से मुराद कुरआन व हदीस का हुक्म दरियाफ्त करना है। लोगों की बातें मान लेने का हुक्म नहीं है।
मुकदमा आलमगीर जिल्द 1, सफा -13

13 .जो नबियों की किसी सुन्नत को ना पसंद करे वह काफ़िर है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द -2, सफा -553

14 .जो सुन्नत को हकीर जाने वो काफिर है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -128, हिदाया जिल्द 1, सफा -541

15 .यहूदी व नसारा अपने मौलवी और दरवेशों का कहना मानते थे इसलिए अल्लाह ने उन्हें मुशरिक फ़रमाया मौमिन को हुक्म किया कि लोगों के कौल मत पूछो बल्कि ये पूछो कि अल्लाह का हुक्म क्या है।
मुकदमा आलमगीर जिल्द 1, सफा -13

16 .जो सुन्नत को हलकी जानकार तर्क कर दे वह काफ़िर है।
मुकदमा हिदाया जिल्द 1, सफा -77

17 .नीयत ज़बान से करना बिदअत है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -49, हिदाया जिल्द 1, सफा -22

18 .गर्दन का मसह बिदअत है और इसकी हदीस मौजू है।
दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -58

19 .नाफ़ के नीचे हाथ बांधने की हदीस बइत्तेफ़ाक़ अइम्मा मुहद्दसीन जईफ़ है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -350

🔗20 .सीने पर हाथ बांधने की हदीस बइत्तेफाक अइम्मा मुहद्दसीन सही है। शरह विकाया सफा -93

🔗21 .इमाम के पीछे सूरह फातिहा न पढ़ने की हदीस जईफ़ है।
~ शरह विकाया 108 व 109

22 .हदीस आमीन बिजहर (बा आवाज़) की साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -365, शरह विकाया, सफा -97

23.तस्दीक रफेयदेन रूकू के पहले व रुकु के बाद।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -384

24 .बेहकी की रिवायत में इब्ने उमर रजि। से आखिर में है कि यही आप सल्ल। की नमाज रफेयदेंन रही यहाँ तक क़ि अल्लाह ताला से जा मिले.यह हदीस सही सनद से है।
हिदाया जिल्द 1, सफा -384

25 .रफेयदेन न करने की हदीस जईफ़ है | ~ शरह विकाया, सफा -102

26 .हक़ यह है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) से रफेयदेन सही साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -386

27 .इंन्कसारी के लिए सर खोलकर नमाज पढ़ना दुरुस्त है।
~ दुर्र मुख्तार जिल्द 1, सफा -299

28 .तरावीह 20 रकात की हदीस जईफ़ है।
~ दुर्रे मुख्तार जिल्द -1 सफा -326, हिदाया जिल्द -1 सफा 563, शरह, विकाया सफा -133

29 .तरावीह आठ 8 रकअत की हदीस सही है।
~ शरह विकाया सफा -123

30 .तरावीह सही हदीस से मय वित्र के 11 रकअत साबित है।
~ हिदाया जिल्द 1, सफा -563, शरह विकाया सफा -133

31 .नमाजे जनाजा में अलहम्दो पढ़ना अक्सर आलिमो के नजदीक जायज है।
~ दुर्रे मुख्तार जिल्द 1, सफा -411

32 .मुसाफा एक हाथ से करना अक्सर रिवायत सहीहा से साबित है।
हिदाया जिल्द 4, सफा -293

33.अत्तहियात में ऊँगली से हरकत देना भी जायज है। ~ हिदाया जिल्द 1, सफा -396
👉🏻🌹अहले हदीस का पैग़ाम पुरी इंसानियत के नाम🌴🌴

Sunday, September 3, 2017

QURAN WA SUNNAT KI PAIRWI KAISE KI JAAYE

QURAN WA SUNNAT KI PAIRWI KAISE KI JAAYE??
Irshad bari taala hai:
“(aiy musalmano!) aaj ke din maine tumhare liye deen muqammal kar diya hai, aur tum par apni nemat ko pura kar diya hai, aur tumhare liye islam ko (bataur) deen pasand kar liya hai”
(surah maida 3)
yah aayat 9 dhul hijjah 10 hijri maidaan e arfaat me naazil hui, iske naazil hone ke 3 mahine baad aap(sws) yah kaamil aur bahtareen deen ummat ko saunp kar rafeeq e aala se ja mile aur ummat ko wasiyat farma gaye
” main tumhare andar aisi do cheezen chhode ja raha hun ki jab tum inhe mazbooti se pakde rahoge kabhi gumraah nahi hoge yani allah ki kitaab aur uske nabi(sws) ki sunnat”
(baihaqi, moatta imam malik 2/899, hakim 1/93, aur ibne hajam ne sahih kaha hai)
malum huwa ki islam, kitaab wa sunnat me seemit hai, aur yah bhi saabit huwa ki masla wa fatawa sirf wahi sahih aur amal ke mutabik hai jo quran wa Hadith ke saath ho
aap(sws) farmate hain:
” meri tamam ummat jannat me daakhil hogi siwaaye uske jisne inkaar kiya, kisi ne pucha(aiy allah ke rasool!) inkaar karne waala kaun hai? Aapne farmaya, jisne mere huqmon ko maana wah jannat me daakhil hoga aur jisne meri nafarmani ki to usne inkaar kiya”
(sahih bukhari 280)
” hz abdullah bin umar ra farmate hain:- har bidat gumraahi hai chaahe log use neki samjhen”
( “al sunnat” muhammad bin nasar marozi pg 82, sharah usulul alkaani 1/92)
imam malik rh ne kya khoob farmaya:- jis shakhs ne islam me neki samjh kar koi nayi cheez ijaad ki to usne socha ki muhammad(sws) ne tableegh risaalat me baimaani se kaam liya (nauzubillah), rasoolullah(sws) ke zamaane me jo cheez deen na thi wah aaj bhi deen nahi ban sakti”
(al aetisham lil shaatibi 1/49)
HADITH KE MAAMLE ME CHAAN-BEEN(INVESTIGATION AUR AHTIYAAT)
Allah taala farmate hain:-” aur hamne aapki Taraf zikr(qur’an) naazil kiya hai taaki aap logon par un ahkaamon ko wajeh karen jo unki taraf naazil ki gayi hai taaki we log gaur karen”
(surah nahal 16:44)
aap(sws) ne farmaya:-” yaad rakho mujhe quran majeed aur uske saath us jaisi ek aur cheez(hadith) di gayi hai”
(abu dawood 4604, ibne habban 97)
aur jis tarah allah taala ne apne huqmon ko farz kiya hai usi tarah apne rasool(sws) ke huqmon ko bhi farz karaar diya hai:
farmaya:-” aiy ahle imaan ! Allah ka huqm mano aur uske rasool ka, aur uske huqmon se hatkar apne amaal ko barbaad na karo”
(surah muhammad 47:33)
malum huwa ki quran majeed ki tarah hadith e nabwi bhi sharai daleel aur hujjat hai, magar hadith se daleel lene se pahle is baat ka pata hona zaroori hai ki kya wah hadith, aap(sws) se saabit bhi hai ya nahi?
Aap(sws) ne farmaya:-” aakhiri zamaane me dajjal aur kazzab honge we tumhe aisi hadith sunaayenge jinhe tumne aur Tumhare baap daadaon ne nahi suna hoga, isliye unse apne aapko bachaana, kahi aisa na ho ki we tumhe gumraah kar den aur fitne me daal den”
(sahih muslim 7 or 71)
aur farmaya:- jo shakhs mujh par jaan kar jhoot bole use chahiye ki apna thikaana aag me bana le”
(sahih bukhari 107, 108)
imam daare kutni rh farmate hai:-” aap(sws) ne apni taraf se baat pahuncha dene ke huqm dene ke baad apni zaat paak par jhoot bolne waale ko aag ki khabar sunaayi isliye isme is baat ki daleel hai ki aapne apni taraf se dhaeff ke bajaaye sahih aur baatil ke bajaaye haq ke pahuncha dene ka huqm diya hai nahi har us cheez ke pahuncha dene ka jiski nisbat aapki taraf kar di gayi”
isliye ki nabi(sws) ne farmaya:- aadmi ke jhoot hone ke liye yahi kaafi hai ki wah har suni sunaayi baat bayaan kar de”
(sahih muslim muqadama 5)
imam muhammad bin idrees shafai(rh) farmate hain:-” ibne seerin, ibraheem nakhai, tawus aur Wagerah tabaeen rh ka yah mazhab hai ki hadith sirf sika se hi li jaayegi aur muhaddeseen me se maine kisi ko is mazhab ke khilaaf nahi paaya”
(al tamheed ibne abdul barr)
bahut se sahaba kiram ra se yah saabit hai ki wah hadith ke bayaan karne me bahut hi ahtiyaat barta karte they
ibne adi rh farmate hain:- sahaba ra ki ek jamaat ne aap(sws) se hadith bayan karne se sirf isliye bachna chaha ki kahin aisa na ho ki hadith me zyadati ya kami ho jaaye aur wah aapke is farman( jo shakhs mujh par jaankar jhoot bolta hai uska thikaana aag hai) ka karaar paaya jaaye
imam muslim(rh) farmate hain:- jo shakhs zaeef hadith ki kamzori ko jaanne ke bawajood uski kami bayaan nahi karta to wah apne is kaam ki wajah se gunaahgaar aur logon ko dhokha deta hai kyonki mumkin hai ki iski bayan ki hui hadith ko sunne waala un sab par ya unme se kuch par amal kare aur mumkin hai ki we sab hadith ya kuch hadith jhoot Hon aur unki koi asal na hon jabki sahih hadith is qadr hain ki unke hote hue daeef hadith ki zarurat hi nahi hai, phir bahut se log jaankar zaeef aur be sanad waali hadith bayan karte hain sirf isliye ki logon me unki shohrat ho aur yah kaha jaaye ki ” unke paas bahut hadith hai aur usne bahut kitabein likhi hai” jo shakhs ilm ke maamle me ravish akhtiyaar karta hai uske liye ilm me kuch hissa nahi aur use aalim kahne ke bajaaye jaahil kahna zyada munaasib hai”
(muqaddama sahih muslim 1/177-179)
imam ibne taimiyya rh farmate hain:-” imamon mese kisi ne nahi kaha ki daeff hadith se wajib ya mustahab amal saabit ho sakta hai jo shakhs yah kahta hai use saare imaamon ke khilaaf kiya”
(al tawassul wal waseela)
yahya bin mueen, ibne hajam aur abu bakr ibne araabi rh ke nazdeek fazail e amaal me bhi sirf maqbool hadith hi amal ke qaabil hain
(qabayidul tahdees)
imam nawawi rh farmate hain:- Hadithon ke muhaddiseen aur imamon rh ka kahna kah ki jab hadith daeff ho to uske baare me yun nahi kahna chahiye ki ” rasoollullah (sws)” ne farmaya ya ” aapne kiya hai” ya ” aapne karne ka huqm diya hai” ya ” ya mana kiya hai” aur yah isliye ki hazam ke qalime riwayat ki sehat ka takaaza karte hain, isliye unka matlab usi riwayat par kiya jaana chahiye jo saabit ho warna wah insaan nabi(sws) par jhoot bolne walon ki tarah hoga magar (afsos ki) is usool ke saare fuqaha aur ulama ne dhyaan me nahi rakha, siwaaye muhaddiseeno ke, aur yah buri qism ki laapar waahi hai kyonki wah(ulama) bahut se sahi riwayat ke baare me kah dete hain ki ” yah riwayat nabi(sws) se riwayat ki gayi hai” aur bahut se daeef riwayat ke baare me kahte hain ki “aap ne farmaya” use falan ne riwayat kiya hai” aur yah sahi tareeqe se hat jaana hai
kyonki muhaddiseen ke usool ke mutabik maqbool ahadith ke bayan me raawi ke naam ka Khulaasa karna chahiye tha (ki falan ne falan se riwayat ki)
wallahu alam

Tuesday, August 15, 2017

कब्रों पर इमारतें, फूल और चिराग

🌹कब्रों पर इमारतें, फूल और चिराग🌹
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हजरत आईशा रजि. फरमाती है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. अपने मरजुल मौत में यह फरमाते थे :-
'अल्लाह यहूदियों पर, जिन्होंने अपने नबियों की कब्रों को सज्दागाह बना लिया लानत भेजता है'।
{इसलिये आपकी कब्र खुली नहीं रखी गई कि कहीं मुसलमान पूजने न लग जाये ।}
[बुखारी 1555]
हजरत जुन्दुब रजि. कहते है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. की वफात से पांच दिन पैहले मैने हुजूर सल्ल. को यह फरमाते हुए सुना :-
"खबरदार हो कि तुमसे पहली उम्मतों ने अपने और नेक मुर्दो की कब्रों को मस्जिद बना लिया था । तुम हरगिज कब्रों को मस्जिद न बनाना, मै तुमकों इससे मना करता हूँ ।"
[मुस्लिम 488]
हजरत जाबिर रजि. कहते है कि नबी करीम सल्ल. ने कब्रों को पक्की करने से (यानी पक्की बनाने से ) मना फरमाया है ।
[इब्ने माजा 1581]
हजरत जाबिर रजि. कहते है कि नबी करीम सल्ल. ने कब्रों पर लिखने से मना फरमाया है ।
[ इब्ने माजा 1582]
हजरत अबू सईद रजि. कहते है कि हुजूर सल्ल. ने कब्रों पर इमारतें बनाने से मना फरमाया है ।
[ इब्ने माजा 1583]
हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कब्रों को गच ( यानी पक्की) करने उस पर लिखने, ईमारत बनाने और उस पर चलने से मना फरमाया है ।
[तिर्मिजी 956, सही मुस्लिम 973, अबूदाऊद 1468]
आजकल कब्रों पर लिखने का रिवाज आम होता जा रहा है नादान से नादान आदमी मर जाता है तो उसकी कब्र पर लिखा जाता है "अलहाज्ज" फलां बिन फलां फलां सन में पैदाईश, फलां सन मे वफात हालांकि हुजूर सल्ल. ने कब्रों पर लिखने से मना फरमाया है ।
हुजूर सल्ल. के नामें मुबारक पर और हुजूर सल्ल. के जितने भी सहाबा किराम रजि. थे उनमें से किसी के नाम से पहले अलहाज्ज नहीं लिखा गया । इमामों के नाम पर मुहद्दिसीने किराम के नाम पर कहीं भी अलहाज्ज लिखा हुआ नजर नहीं आता लेकिन हमारे हिन्दुस्तान में एक जाहिल की कब्र पर लिखा जाता है । आलिम हो या जाहिल किसी की कब्र पर लिखकर लगवाना जायज नहीं ।
हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि " तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल सल्ल. ने मुझे भेजा था वह यह कि किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो "
[ तिर्मिजी 954, सही मुस्लिम 972, अबूदाऊद 1461, मिश्कात 1598]
कुछ लोग कहते है कि कब्रें पक्की बन जाने के बाद उसको तोडने का हुक्म नहीं है । वे लोग बगैर ईल्म के बहस करते रहते है उनको न तो कुरान करीम का ईल्म है और न तो हदीसों की जानकारी है और न तो फुकहा ए किराम के फत्वों की तहकीकात है ।
कब्रों पर फूल डालना और चिराग वगैरह जलाना ?
हजरत इब्ने अब्बास रजि. कहते है कि हुजूर नबी करीम सल्ल. दो कर्बों पर से गुजरे , तो आपने फरमाया इन दोनों पर अजाब हो रहा है और किसी बडी बात पर अजाब नहीं हो रहा है :-
1. एक तो उनमें से पेशाब से बचता न था ।
2. दूसरा चुगलखोरी करता था ।
फिर आपने एक तर शाख ली और उसे चीर कर दो टुकड़े कर दिये और हर कब्र पर एक टुकडा गाड दिया ।
सहाबा रजि. ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल. ! यह आपने क्यों किया ?
फरमाया उम्मीद है कि जबतक ये दोनों लकडियां सूख न जाएं अजाब उन पर कम रहेगा ।
[ बुखारी 211, सही मुस्लिम 250 ]
नबी ए करीम सल्ल. का यह एक मोजिजा था । हम लोग अगर पूरे का पूरा पेड किसी कब्र पर रख दे तब भी अजाब कम नहीं हो सकता । हम खुद अपने होने वाले अजाब को कम नहीं कर सकते, तो दूसरों के अजाब को क्या कम करायेंगे । और नबी करीम सल्ल. ने उन लोगों की कब्रों पर हरी डाली लगायी थी जिन की कब्रों पर अजाब हो रहा था अब आप अगर इस हदीस से फूल चढाने की दलील लेते है तो सबसे पहले उस कब्र पर अजाब साबित करना पडेगा, जिस कब्र पर आप फूल चढाते है और तमाम उम्मत का इस बात पर इत्तिफाक है कि हकीकत में जो अल्लाह के वलि है उन पर अजाब नहीं होता ।
हजरत उमर बिन खत्ताब रजि. से रिवायत है कि वह (तवाफ में) काले पत्थर (हजरे अस्वद) के पास आये फिर उसको बोसा दिया और कहा कि बेशक मैं जानता हूँ कि तू एक पत्थर है न किसी को नुक्सान पहुंचा सकता है और न फायदा पहुंचा सकता है और अगर मैने नबी करीम सल्ल. को तेरा बोसा देते न देखा होता तो मैं तुझे हरगिज बोसा न देता ।
[सही बुखारी 1482, तिर्मिजी 775]
हजरत उमर रजि. का इन लफ्जों से मकसद यह था कि कहीं अगले जमाने के लोग सिर्फ पत्थर की ताजीम व तक्रीम न करने लगें और उसको नफा या नुकसान का मालीक न समझ बैठे और उसका चूमना देखकर लोग किसी फित्ने में मुब्तला न हो जायें ।
अब कब्रों पर चिराग जलाने और कब्रों को सजाने के बारे में भी सुन ले और फिर खुद अपनी अक्ल और ईमानदारी से इंसाफ करें कि हम शरीयत पर है या जहालत पर ?
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि. फरमाते है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कब्रों की जियारत करने वाली औरतों पर लानत फरमायी है और कब्रों पर मस्जिद बनाने और चिराग जलाने वालों पर भी लानत फरमायी है ।
[अबूदाऊद 1479, तिर्मिजी 280, मिश्कात 682,]
इस हदीस में नबी करीम सल्ल. ने तीन किस्म के लोगों पर लानत फरमायी है :-
1. कब्रों की जियारत करने वाली औरतों पर लानत । आजकल औरतें बहुत ज्यादा मजारों पर जाती है वे तो लानत की मुस्तहिक होती ही है लेकिन उस औरत का बाप भाई या शौहर या बेटा अगर उस औरत को खुशी से मजारों पर भेजता है तो भेजने वाले पर भी लानत होगी क्योंकि शराब पीना हराम, तो पिलाना भी हराम, सूद का लेना हराम, तो सूद का देना भी हराम।
2. दूसरा कब्रों पर मस्जिद बनाने वालो पर लानत । इन लफ्जों का यह मतलब नहीं है कि कब्रों पर कोई मस्जिद बना डाले, तो उस पर लानत, बल्कि इसका मतलब यह है कि जितनी ताजीम और अदब मस्जिद की होनी चाहिये उस कब्र की ताजीम व अदब बढा देने पर लानत फरमायी है । अब सुनिये और इंसाफ कीजिये -
आपने किसी मस्जिद में सोन या चांदी के दरवाज़े नहीं देखे होंगे, मगर कुछ दरगाहों में आपने देखे होंगे, कहीं कहीं तो सोने चांदी की जालियां होती है और कहीं कहीं तो दरवाजे भी बने हुये देखें होंगे। जब कब्रे सजायी जाती है तो उन उन कब्रों की इज्जत और अदब व ताजीम जामा मस्जिदों से भी बढ जाती है मस्जिदे नबवी सल्ल. से भी बढ जाती है और काबा शरीफ से भी बढ जाती है । आप कहीं भी किसी मुल्क में, किसी कस्बे या शहर में, किसी मस्जिद में नमाज पढने जायेंगे तो आप अपने जूते मस्जिद में ले जाना चाहे तो ले जा सकते है और एहतियात से रख सकते है यहाँ तक कि जो लोग हज को जाते है वे मस्जिदे नबवी सल्ल. में भी अपनी जूतिंया रख सकते है और काबा शरीफ के अडोस पडौस में आप जहां चाहे अपनी जूतियां रख सकते है लेकिन आप अपनी जूतियां दरगाह में नहीं ले जा सकते क्योंकि अब उस दरगाह का मर्तबा मस्जिदे नबवी सल्ल. से और काबा शरीफ से भी बढ गया है ।
हजरत अबूहुरैरहा रजि. कहते है , अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :-
जब तुम में से कोई आदमी नमाज पढे तो अपनी जूतियों को दायें बायें न रखे इसलिये कि बायें जानिब रखना दूसरे के दायें जानिब रखना होगा, बल्कि जूतियों को पांव के दर्मियान रख लें ।
[अबूदाऊद 649, इब्ने माजा 1452]
इसके अलावा तवाफ काबे का था ये लोग दरगाहों का तवाफ करने लगे, बोसा देना हजरे अस्वद का था ये लोग दरगाहों को चूमने लगे, बरकत वाला पानी जमजम का था ये लोग कब्रों को दो धो कर यानी गुस्ल देकर और उस गुस्ल वाले पानी को तबर्रूक और बरकत वाला समझ कर पीने लगे और बेचने भी लगे है । गिलाफ तो काबे पर चढाया जाता है ये लोग कब्रों पर हजारों रूपये की कीमती गिलाफ चादर चढाने लगे । सज्दा अल्लाह ताआला को था ये ये जाहिल कब्रों पर सजदा करने लगे । अदब से हाथ बांधकर नमाज में खडे रहने का हुक्म था ये लोग कब्रों पर हाथ जोडे खडे रहने लगे और जब दरगाह से बहार निकलेंगे तो उस वक्त ये जाहिल लोग दरगाह को पीठ देकर नहीं निकलेंगे बल्कि उलटे पैर पीछे हटते हटते बाहर निकलेंगे। हज को जाने वाले हाजी लोग काबे को पीठ देकर वापस हो सकते है नबी करीम सल्ल. के रोजे को पीठ देकर बाहर निकल सकते है मगर दरगाह को पीठ देकर आप बाहर नहीं निकल सकते जहालत की भी कोई हद है ।
3. तीसरा कब्रों पर चिराग जलाने वालो पर लानत उपर हदीस में देख लें ।
अब आप ही अन्दाजा लगा ले कि आज इन दोनों तरीकों के सिवा कब्रों और मजारों पर क्या कुछ नहीं होता, यानी कब्र का तवाफ करना, कब्रों को धो धो कर पीना, वहां पर हाल चढा के सर धुनना, मुशायरा और कव्वाली कराना, रंडियों का गाना, मजार पर सजदे करना, नियाज व नज्र चढाकर हाजतें मांगना, मासूम बच्चों को तुर्बतों पर लिटाना, लोबानदानी की खाक चाटना , घोडे लटकाना , पालने टांगना, डोरे धागे मजारों की जालियों में अपने अपने नाम के बांधना और तुर्बतों पर घुमा घुमा कर डोरों को अपनी गरदनों, बाजुओ, कमर और पेडू पर बांधना, ये तमाम काम नाजायज व हराम और गुमराही व जहालत के तरीके है जो इंसान को शरीअत से महरूम करके शिर्क व कुफ्र तक ले जाते है ।

Sunday, January 15, 2017

जाएज़ वसीले की तीन क़िस्में

*जाएज़ वसीले की तीन क़िस्में*
--------------------------------------
1⃣ *_पहला जाएज़ वसीला_*
(1) अपने नेक आमाल को वसीला बनाना
*📚देखें सहीह बुख़ारी :2215*👇👇
आप (स.अ.व.) ने फ़रमाया: कि तीन शख़्स कहीं बाहर जा रहे थे कि अचानक बारिश होने लगी, उन्होंने एक पहाड़ की ग़ार में जाकर पनाह ली, इत्तेफ़ाक़ से पहाड़ की एक चट्टान ऊपर से लुढ़की (और उस ग़ार के मुँह को बन्द कर दिया जिसमें यह तीनों पनाह लिए हुए थे) अब एक ने दूसरे से कहा: कि अपने सबसे अच्छे अमल का जो तुमने कभी किया हो नाम लेकर अल्लाह से दुआ करो 
इस पर *उनमें में से एक ने यह दुआ की:* "ऐ अल्लाह! मेरे माँ-बाप बहुत ही बूढ़े थे, मैं बाहर ले जाकर अपने मवेशी चराता था फिर जब शाम को वापस आता तो उनका दूध निकालता और बर्तन में पहले अपने वालिदैन को पेश करता जब मेरे वालिदैन पी चुकते तो बच्चों को और अपनी बीवी को पिलाता, इत्तेफ़ाक़ से एक रात वापसी में देर हो गई और जब मैं घर लौटा तो वालिदैन सो चुके थे, उसने कहा: कि फिर मैंने पसन्द नहीं किया कि उन्हें जगाऊं, बच्चे मेरे क़दमों में भूखे पड़े रो रहे थे, मैं बराबर दूध का प्याला लिए वालिदैन के सामने इसी तरह खड़ा रहा यहाँ तक कि सुबह हो गई
ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मैंने यह काम सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो हमारे लिए इस चट्टान को हटाकर इतना तो रास्ता बना दे कि हम आसमान को तो देख सकें" नबी करीम (स.अ.व.) ने फ़रमाया चुनांचे वह पत्थर कुछ हट गया
*दूसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू ख़ूब जानता है कि मुझे अपने चचा की एक लड़की से इतनी ज़्यादा मुहब्बत थी जितनी एक मर्द को किसी औरत से हो सकती है, उस लड़की ने कहा: तुम मुझसे अपनी ख़्वाहिश उस वक़्त तक पूरी नहीं कर सकते जब तक मुझे सौ अशरफ़ी न दे दो मैंने उनके हासिल करने की कोशिश की, और आख़िर इतनी अशरफ़ी जमा कर लीं, फिर जब मैं उसकी दोनों रानों के दरमियान बैठा तो वह बोली: अल्लाह से डर और महर को नाजायज़ तरीक़े पर न तोड़ इस पर मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे छोड़ दिया,
अब अगर तेरे नज़दीक मैंने यह अमल तेरी रज़ा के लिये किया था तो हमारे लिए (निकलने का) रास्ता बना दे" नबी करीम (स.अ.व) ने फ़रमाया: चुनांचे वह पत्थर दो तिहाई हट गया
*तीसरे शख़्स ने दुआ की:* "ऐ अल्लाह! तू जानता है कि मैंने एक मज़दूर से एक फ़रक़ जुआर पर काम कराया था जब मैंने उसकी मज़दूरी उसे दी तो उसने लेने से इंकार कर दिया, मैंने उस जुआर को लेकर बो दिया (फ़सल जब कटी तो उसमें इतनी जुआर पैदा हुई कि) उससे मैंने एक बैल और एक चरवाहा ख़रीद लिया, कुछ अरसे के बाद फिर उसने आकर मज़दूरी मांगी, कि ऐ अल्लाह के बन्दे! मुझे मेरा हक़ दे दो मैंने कहा: उस बैल और उस चरवाहे के पास जाओ कि यह तुम्हारी ही मिल्कियत है उसने कहा: कि मुझसे मज़ाक़ करते हो, मैंने कहा "मैं मज़ाक़ नहीं करता" वाक़ई यह तुम्हारे हैं
तो ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक यह काम मैंने सिर्फ़ तेरी रज़ा हासिल करने के लिए किया था तो यहाँ हमारे लिए (इस चट्टान को हटाकर) रास्ता बना दे चुनांचे वह ग़ार पूरा खुल गया और वह तीनों शख़्स बाहर आ गए
*__________________________________*
2⃣ *_दूसरा जाएज़ वसीला_*
(2) दुआ में अल्लाह के प्यारे प्यारे नामों का वसीला
*📚देखें सूरह ऐराफ़ :180*👇👇
और अच्छे-अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं सो उन नामों से अल्लाह को पुकारो
*___________________________________*
*_3⃣तीसरा जाएज़ वसीला_*
(3) किसी ज़िन्दा नेक शख़्स से दुआ करवाई जाए
*📚देखें सहीह बुख़ारी :1010*👇👇
जब कभी उमर (रज़ि) के ज़माने में क़हत (सूखा) पड़ता तो उमर (रज़ि) अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब (रज़ि) के वसीले से दुआ करते और फ़रमाते: ऐ अल्लाह! पहले हम तेरे पास अपने नबी करीम (स.अ.व) का वसीला लाया करते थे तो तू पानी बरसाता था अब हम अपने नबी करीम (स.अ.व) के चचा का वसीला बनाते हैं तो, तू हम पर पानी बरसा अनस (रज़ि) फ़रमाते हैं कि बारिश बरसने लगती थी
*नोट:-*👇👇👇
यह हदीस इस बात की वाज़ह दलील है कि मुसलमान रसूलुल्लाह (स.अ.व) की ज़िन्दगी में बारिश की दुआ करवाने की ख़ातिर रसूलुल्लाह (स.अ.व) का वसीला पकड़ते थे मगर जब आप (स.अ.व) अपने मालिक ए हक़ीक़ी से जा मिले तो कभी आपसे दुआ की दरख़्वास्त नहीं की जबकि रसूलुल्लाह (स.अ.व) की क़ब्र ए मुबारक उन लोगों के पास थी बल्कि रसूलुल्लाह (स.अ.व) के चचा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) से दुआ की दरख़्वास्त करते और वह उस वक़्त ज़िन्दा थे लिहाज़ा हज़रत ए अब्बास (रज़ि) उन मुसलमानों के लिए दुआ करते
*__________________________________*
*नाजायज़ वसीला*
जबकि वसीले की जो शक्ल हमारे मआशरे में राएज है वह बिल्कुल बातिल और हराम है और मुशरिकीन ए अरब भी इसी क़िस्म के वसीले के क़ायल थे
*📚देखें सूरह ज़ुमर :03*👇👇
ख़बरदार! अल्लाह तआला ही के लिए ख़ालिस इबादत करना है और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बना रखे हैं (और अपने इस फ़ेल की तौजी यह करते हैं) कि हम इनको सिर्फ़ इसलिए पुकारते हैं कि यह (बुज़ुर्ग) अल्लाह की नज़दीकी के मरतबे तक हमारी रसाई करा दें यह लोग जिस बारे में इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं इसका सच्चा फ़ैसला अल्लाह (ख़ुद) करेगा झूठे और नाशुक्रे (लोगों) को अल्लाह राह नहीं दिखाता
*अल्लाह तआला हमें जाएज़ वसीले की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए*
*_आमीन_*💐