‘तीन तलाक’
अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने कहा:
‘‘कोर्इ मोमिन अपनी बीबी से नफरत न करे। अगर उसे उसकी एक आदत नापसन्द हैं तो दूसरी आदत पसन्द हो सकती है। (मुस्लिम)
‘‘कोर्इ मोमिन अपनी बीबी से नफरत न करे। अगर उसे उसकी एक आदत नापसन्द हैं तो दूसरी आदत पसन्द हो सकती है। (मुस्लिम)
अल्लाह ने कुरान पाक मे फरमाया कि अपनी पत्नियों को नुकसान पहुंचाने की बात मत सोचा करो (2:231)
लिहाज़ा अगर किसी शौहर की बीवी अगर बदइख्लाक, बदतमीज़ और नाफ़रमान हैं तो शौहर को फ़ौरन ही तलाक का फ़ैसला नही करना चाहिये
जिन औरतो की नाफ़रमानी और बददिमागी का तुम्हे खौफ़ हो इन्हे नसीहत करो और इन्हे अलग बिस्तरो पर छोड़ दो और इन्हे मार की सज़ा दो और फ़िर अगर वो ताबेदारी करे तो इन पर कोई रास्ता तलाश न करो, बेशक अल्लाह ताला बड़ी बुलन्द और बड़ाई वाला हैं| (सूरह निसा 4/34)
इसी तरह ज़्यादती और बदइख्लाकी शौहर की तरफ़ से हो तब भी बीवी को भी शौहर को मौका देना चाहिये न के फ़ौरन खुला का फ़ैसला करना चाहिये
अगर किसी औरत को अपने शौहर की बददिमागी और बेपरवाही का खौफ़ हो तो दोनो आपस मे जो सुलह कर ले इस मे किसी पर कोई गुनाह नही| (सूरह निसा 4/128)
अगर शौहर बीवी की सारी कोशीशे नाकाम हो जाये तो भी तलाक देने मे जल्दबाज़ी न कर एक और रास्ता इस्लाम ने बताया हैं के दोनो के खानदान से किसी एक समझदार और हकपरस्त को सर जोड़कर सुधार के मामले का रास्ता निकालना चाहिये|
अगर तुम्हे मियां बीवी के दरम्यान आपस की अनबन का खौफ़ हो तो एक मन्सफ़ मर्दवालो मे से और एक औरत के घरवालो मे से मुकरर्र करो, अगर ये दोनो सुलह करना चाहेगे तो अल्लाह दोनो मे मिलाप करा देगा, यकीनन अल्लाह ताला पूरे इल्म वाला पूरी खबर वाला हैं| (सूरह निसा 4/35)
अगर ये कोशीश भी नाकाम साबित हो तो फ़िर इस्लाम इस चेतावानी के साथ दोनो को एक दूसरे से अलग हो जाने की इजाज़त देता हैं के –
हज़रत सौबान रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया - जिस औरत ने अपने पति से बिना वजह तलाक मांगी उस पर जन्नत की खुशबू हराम हैं| (तिर्मिज़ी)
हज़रत सौबान रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया - बिना वजह खुलाअ मांगने वाली औरते धोखेबाज़ हैं| (तिर्मिज़ी)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया - अल्लाह के नज़दीक यह बहुत बड़ा गुनाह हैं कि एक आदमी किसी औरत से निकाह करले और फ़िर जब अपनी ज़रूरत पूरी कर ले तो तलाक दे दे और उसका मेहर भी अदा न करे (हाकिम)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 कहते हैं की नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया - तीन चीज़ो मे सल्लल लाहो अलैहे वसल्लमजीदगी और हंसी मज़ाक मे की गयी बात वही हो जाती हैं| पहली चीज़ निकाह, दूसरी चीज़ तलाक और तीसरी चीज़ रुजु| (तिर्मिज़ी)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया - जो किसी औरत को उसके शौहर के खिलाफ़ भड़काये या गुलाम को मालिक के खिलाफ़ बहकाये वो हममे से नही| (अबू दाऊद)
तलाक किस हद तक नापसन्दीदा अमल हैं और इसकी कराहत ऊपर मौजूद हदीस नबवी से की जा सकती हैं|
इस चेतावनी के बाद भी अगर दोनो एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो शरिअत ने एक ऐसा बेहतर तरीका बताया की अलग होने के इस तरीके मे भी दोनो को मिलाने की आखिरी कोशिश करी हैं|
तलाक का मसनून तरीका
1. अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
ऐ नबी जब तुम अपनी बीवियो को तलाक देना चाहो तो इन की इद्दत के दिनो मे इन्हे तलाक दो और इद्दत का हिसाब रखो, और अल्लाह से जो तुम्हारा रब हैं डरते रहो, न तुम इन्हे घर से निकालो और न खुद वो निकले हा ये और बात हैं के वो खुली बुराई कर बैठे, ये अल्लाह की मुकरर्र करी हदे हैं, जो शख्स अल्लाह की हदो से आगे बढ़ जाये इसने यकीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया, तुम नही जानते शायद इसके बाद अल्लाह कोई नयी बात पैदा कर दे| (सूरह तलाक 65/1)
2. औरत को हैज़ (मासिक धर्म) के दौरान तलाक देना मना हैं अगर बीवी से हैज़ के दौरान झगड़ा हुआ हो तो भी मर्द अगर तलाक देना चाहे तब भी हैज़ खत्म होने तक इन्तज़ार करना चाहिये|(इब्ने माजा)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 से रिवायत हैं के उन्होने नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के दौर मे अपनी बीवी को हालते हैज़ मे तलाक दे दी तो हज़रत उमर रज़ि0 ने इस बारे मे नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से मालूम किया तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – अब्दुल्लाह को हुक्म दो कि वह अपनी बीवी से रुजु करे| फ़िर उसे छोड़ दे यहां तक के वह हैज़ से पाक हो जाये फ़िर हैज़ आये और फ़िर पाक हो जाये फ़िर हमबिस्तर हुये बिना चाहे तो रोके रखे चाहे तो तलाक दे और यह वो इद्दत हैं जिसके हिसाब से अल्लाह ताला ने औरतो को तलाक देने का हुक्म दिया हैं| (मुस्लिम)
3. जिस पाकी की हालत मे तलाक देना हो उस पाकी की हालत मे हमबिस्तरी करना मना हैं| (इब्ने माजा) याद रहे हैज़ के दिनो के अलावा बाकी दिनो मे जिन मे औरत नमाज़ अदा करती हैं उन दिनो को पाकी के दिन कहा जाता हैं|
4. एक वक्त मे केवल एक ही तलाक देनी चाहिये एक साथ तीन तलाके देना बहुत बड़ा गुनाह हैं| बीवी को अलग करने के लिये तलाको की ज़्यादा से ज़्यादा तादाद तीन हैं
3. जिस पाकी की हालत मे तलाक देना हो उस पाकी की हालत मे हमबिस्तरी करना मना हैं| (इब्ने माजा) याद रहे हैज़ के दिनो के अलावा बाकी दिनो मे जिन मे औरत नमाज़ अदा करती हैं उन दिनो को पाकी के दिन कहा जाता हैं|
4. एक वक्त मे केवल एक ही तलाक देनी चाहिये एक साथ तीन तलाके देना बहुत बड़ा गुनाह हैं| बीवी को अलग करने के लिये तलाको की ज़्यादा से ज़्यादा तादाद तीन हैं
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 फ़रमाते हैं कि सुन्नत तलाक यह हैं के शौहर अपनी बीवी को हर पाकी मे केवल एक तलाक दे जब औरत तीसरी बार पाकी हासिल करे तो उसे तलाक दे उसके बाद जो हैज़ आयेगा उस पर इद्दत खत्म हो जायेगी| (इब्ने माजा)
5. पहली तलाक हो या दूसरी या तीसरी हर तलाक के बाद औरत को तीन हैज़ या तीन पाकी(जो लगभग 3 माह बनती हैं) इन्तज़ार करना हुक्म हैं इस मुद्दत को इद्दत कहते हैं|
और तलाक दी हुई औरते अपने आप को तीन हैज़(तीन माह) तक रोके रखे और अगर वे अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखती हैं| (सूरह अल बकरा 2/228)
तुम्हारी औरतो मे से जो औरते हैज़ से नाउम्मीद हो चुकी हो गयी हो, अगर तुम्हे शुबहा हो तो इन की इद्दत तीन महीने हैं और इन की भी जिन्हे हैज़ आना शुरु ही न हुआ हो और हामला औरतो कि इद्दत इन का हमल हैं| (सूरह तलाक 65/4)
6. पहली और दूसरी तलाक के बाद दौराने इद्दत बीवी से सुलह करने को शरिअत मे पलट जाना कहते हैं और ऐसी तलाक को तलाक रज़ई कहते हैं|
और जब तुम अपनी औरतो को तलाक दो और वो अपनी इद्दत पूरी कर ले तो इन्हे अपने खाविन्दो से निकाह करने से न रोको जब के वो आपस मे दस्तूर के मुताबिक रज़ामन्द हैं| (सूरह अल बकरा 2/232)
7. पहली और दूसरी तलाक के बाद तीन महीने इद्दत गुज़ारने मकसद यह हैं के अगर शौहर इस मुद्दत मे तलाक का फ़ैसला बदलना चाहे तो उसे तीन महीनो मे किसी भी वक्त रुजु(सुलह) कर सकता हैं| इसीलिये पहली दो तलाको को रजई तलाक कहा जाता हैं| तीसरी तलाक के बाद शौहर को रुजु का हक नही रहता बल्कि तलाक देते ही अलेहदगी हो जाती हैं लिहाज़ा तीसरी तलाक को तलाके बाइन(अलग करने वाली) कहा जाता हैं| तीसरी तलाक के बाद इद्दत का मकसद पहले शौहर से ताल्लुकातो की इज़्ज़त मे तीन महीने तक दूसरे से निकाह से रुके रहना|
7. पहली और दूसरी तलाक के बाद तीन महीने इद्दत गुज़ारने मकसद यह हैं के अगर शौहर इस मुद्दत मे तलाक का फ़ैसला बदलना चाहे तो उसे तीन महीनो मे किसी भी वक्त रुजु(सुलह) कर सकता हैं| इसीलिये पहली दो तलाको को रजई तलाक कहा जाता हैं| तीसरी तलाक के बाद शौहर को रुजु का हक नही रहता बल्कि तलाक देते ही अलेहदगी हो जाती हैं लिहाज़ा तीसरी तलाक को तलाके बाइन(अलग करने वाली) कहा जाता हैं| तीसरी तलाक के बाद इद्दत का मकसद पहले शौहर से ताल्लुकातो की इज़्ज़त मे तीन महीने तक दूसरे से निकाह से रुके रहना|
8. इस के बाद इसी आयत में फ़ौरन फ़रमाया कि (فَإِن طَلَّقَهَا) अगर
पहले शौहर के बाद दूसरा शौहर भी तलाक़ दे दे तो (فَلَا جُنَاحَ عَلَیْھِمَآ) उन के
लिए कोई गुनाह नहीं, यानी पहला शौहर और वो औरत जिस की दूसरे शौहर से तलाक़ हो गई हो
कि (أَنْ یَتَرَاجِعًا) वो
दोनों फिर रजअत कर लें यानी दोनों आपस में शादी कर लें।
ये तलाक दो मरतबा हैं फ़िर या तो अच्छाई से रोकना या उमदगी के साथ छोड़ देना| (सूरह अल बकरा 2/229)
एक साथ तीन तलाके
| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की ज़िन्दगी मे एक बार किसी श्ख्स ने अपनी बीवी को एक साथ तीन तलाके दे दी| जब आपको इस बारे मे पता चला तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम गुस्से के मारे उठ खड़े हुये और फ़रमाया -
मेरी मौजूदगी मे अल्लाह की किताब से यह मज़ाक| एक शख्स ने अर्ज़ किया - या रसूलुल्लाह सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! क्या मैं उसे कत्ल कर दूं| (निसाई)
इब्ने अब्बास (र .आ ) से रिवायत है के हज़रत अबू रकाना (र .आ ) ने अपनी बीवी को 3 तलाक़ दिए बाद में परेशान हुए और नबी के पास गए तो नबी ने फरमाये आप ने तलाक़ कैसा दिए …?? रुकना ने कहा मैंने 3 तलाक़ दे दिया तो नबी ने फरमाये आप एक मजलिस में दिए …?? तो वो कहे ” हाँ ” तो नबी ने फरमाये वो 1 ही तलाक़ शुमार हुआ अगर आप चाहे तो रुज़ू कर सकते हैं … तब रुकना ने रुज़ू करलिये
{ मुसनद अहमद
#265/1}
तीन तलाके एक साथ देना कितना बड़ा गुनाह हैं उसकी वजह यह हैं के शरिअत ने खानदान को तबाही से बचाने के लिये जिस ज़रूरत और हिकमत को अमल मे लाना चाहती हैं तीन तलाक देने वाला शख्स न सिर्फ़ कानूने इलाही की नाफ़रमानी करता हैं बल्कि उन हिकमतो को भी पामाल कर देता हैं साथ ही ये सरासर नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की खुली हुई नाफ़रमानी हैं| बावजूद इसके नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने इस तरह तीन तलाक एक साथ देने वाले के तलाक को सिर्फ़ एक ही माना हैं तीन नही|
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने मे उसके बाद हज़रत अबू बक्र रज़ि0 की खिलाफ़त मे हज़रत उमर रज़ि0 की खिलाफ़त मे दो साल तक एक बार मे दी गयी तीन तलाक एक ही मानी जाती थी| हज़रत उमर रज़ि0 ने कहा – जिस चीज़ मे लोगो को मोहलत दी गयी थी लोगो ने उस बारे मे जल्दबाज़ी से काम लेना शुरु कर दिया हैं लिहाज़ा आइन्दा हम एक साथ दी गयी तीन तलाको को तीन ही लागू कर देंगे| लिहाज़ा हज़रत उमर रज़ि0 ने अपना फ़ैसला लागू कर दिया| (मुस्लिम)
हज़रत उमर रज़ि0 ने लोगो को एक बार मे तीन तलाक देने से रोकने के लिये सज़ा के तौर पर तीन तलाक को तीन तलाक ही लागू कर दिया था लेकिन ये शरियत का मुस्तकिल कानून नही था| ये ठीक उसी तरह हैं के कोई इन्सान 5 वक्त की नमाज़ को किसी एक वक्त मे नही पढ़ सकता| ठीक यही मसला एक साथ तीन तलाक देने का हैं
तीन तलाके एक साथ देना कितना बड़ा गुनाह हैं उसकी वजह यह हैं के शरिअत ने खानदान को तबाही से बचाने के लिये जिस ज़रूरत और हिकमत को अमल मे लाना चाहती हैं तीन तलाक देने वाला शख्स न सिर्फ़ कानूने इलाही की नाफ़रमानी करता हैं बल्कि उन हिकमतो को भी पामाल कर देता हैं साथ ही ये सरासर नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की खुली हुई नाफ़रमानी हैं| बावजूद इसके नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने इस तरह तीन तलाक एक साथ देने वाले के तलाक को सिर्फ़ एक ही माना हैं तीन नही|
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने मे उसके बाद हज़रत अबू बक्र रज़ि0 की खिलाफ़त मे हज़रत उमर रज़ि0 की खिलाफ़त मे दो साल तक एक बार मे दी गयी तीन तलाक एक ही मानी जाती थी| हज़रत उमर रज़ि0 ने कहा – जिस चीज़ मे लोगो को मोहलत दी गयी थी लोगो ने उस बारे मे जल्दबाज़ी से काम लेना शुरु कर दिया हैं लिहाज़ा आइन्दा हम एक साथ दी गयी तीन तलाको को तीन ही लागू कर देंगे| लिहाज़ा हज़रत उमर रज़ि0 ने अपना फ़ैसला लागू कर दिया| (मुस्लिम)
हज़रत उमर रज़ि0 ने लोगो को एक बार मे तीन तलाक देने से रोकने के लिये सज़ा के तौर पर तीन तलाक को तीन तलाक ही लागू कर दिया था लेकिन ये शरियत का मुस्तकिल कानून नही था| ये ठीक उसी तरह हैं के कोई इन्सान 5 वक्त की नमाज़ को किसी एक वक्त मे नही पढ़ सकता| ठीक यही मसला एक साथ तीन तलाक देने का हैं
नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी मे तीन तलाको को एक ही तलाक बताया| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के मुकाबले मे हज़रत उमर रज़ि0 का इज्तिहाद दलील नही बन सकता| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
ऐ लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढ़ो| (सूरह हुजरात 49/1)
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