🌹कब्रों पर इमारतें, फूल और चिराग🌹
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हजरत आईशा रजि. फरमाती है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. अपने मरजुल मौत में यह फरमाते थे :-
'अल्लाह यहूदियों पर, जिन्होंने अपने नबियों की कब्रों को सज्दागाह बना लिया लानत भेजता है'।
{इसलिये आपकी कब्र खुली नहीं रखी गई कि कहीं मुसलमान पूजने न लग जाये ।}
[बुखारी 1555]
'अल्लाह यहूदियों पर, जिन्होंने अपने नबियों की कब्रों को सज्दागाह बना लिया लानत भेजता है'।
{इसलिये आपकी कब्र खुली नहीं रखी गई कि कहीं मुसलमान पूजने न लग जाये ।}
[बुखारी 1555]
हजरत जुन्दुब रजि. कहते है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. की वफात से पांच दिन पैहले मैने हुजूर सल्ल. को यह फरमाते हुए सुना :-
"खबरदार हो कि तुमसे पहली उम्मतों ने अपने और नेक मुर्दो की कब्रों को मस्जिद बना लिया था । तुम हरगिज कब्रों को मस्जिद न बनाना, मै तुमकों इससे मना करता हूँ ।"
[मुस्लिम 488]
"खबरदार हो कि तुमसे पहली उम्मतों ने अपने और नेक मुर्दो की कब्रों को मस्जिद बना लिया था । तुम हरगिज कब्रों को मस्जिद न बनाना, मै तुमकों इससे मना करता हूँ ।"
[मुस्लिम 488]
हजरत जाबिर रजि. कहते है कि नबी करीम सल्ल. ने कब्रों को पक्की करने से (यानी पक्की बनाने से ) मना फरमाया है ।
[इब्ने माजा 1581]
[इब्ने माजा 1581]
हजरत जाबिर रजि. कहते है कि नबी करीम सल्ल. ने कब्रों पर लिखने से मना फरमाया है ।
[ इब्ने माजा 1582]
[ इब्ने माजा 1582]
हजरत अबू सईद रजि. कहते है कि हुजूर सल्ल. ने कब्रों पर इमारतें बनाने से मना फरमाया है ।
[ इब्ने माजा 1583]
[ इब्ने माजा 1583]
हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कब्रों को गच ( यानी पक्की) करने उस पर लिखने, ईमारत बनाने और उस पर चलने से मना फरमाया है ।
[तिर्मिजी 956, सही मुस्लिम 973, अबूदाऊद 1468]
[तिर्मिजी 956, सही मुस्लिम 973, अबूदाऊद 1468]
आजकल कब्रों पर लिखने का रिवाज आम होता जा रहा है नादान से नादान आदमी मर जाता है तो उसकी कब्र पर लिखा जाता है "अलहाज्ज" फलां बिन फलां फलां सन में पैदाईश, फलां सन मे वफात हालांकि हुजूर सल्ल. ने कब्रों पर लिखने से मना फरमाया है ।
हुजूर सल्ल. के नामें मुबारक पर और हुजूर सल्ल. के जितने भी सहाबा किराम रजि. थे उनमें से किसी के नाम से पहले अलहाज्ज नहीं लिखा गया । इमामों के नाम पर मुहद्दिसीने किराम के नाम पर कहीं भी अलहाज्ज लिखा हुआ नजर नहीं आता लेकिन हमारे हिन्दुस्तान में एक जाहिल की कब्र पर लिखा जाता है । आलिम हो या जाहिल किसी की कब्र पर लिखकर लगवाना जायज नहीं ।
हुजूर सल्ल. के नामें मुबारक पर और हुजूर सल्ल. के जितने भी सहाबा किराम रजि. थे उनमें से किसी के नाम से पहले अलहाज्ज नहीं लिखा गया । इमामों के नाम पर मुहद्दिसीने किराम के नाम पर कहीं भी अलहाज्ज लिखा हुआ नजर नहीं आता लेकिन हमारे हिन्दुस्तान में एक जाहिल की कब्र पर लिखा जाता है । आलिम हो या जाहिल किसी की कब्र पर लिखकर लगवाना जायज नहीं ।
हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि " तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल सल्ल. ने मुझे भेजा था वह यह कि किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो "
[ तिर्मिजी 954, सही मुस्लिम 972, अबूदाऊद 1461, मिश्कात 1598]
[ तिर्मिजी 954, सही मुस्लिम 972, अबूदाऊद 1461, मिश्कात 1598]
कुछ लोग कहते है कि कब्रें पक्की बन जाने के बाद उसको तोडने का हुक्म नहीं है । वे लोग बगैर ईल्म के बहस करते रहते है उनको न तो कुरान करीम का ईल्म है और न तो हदीसों की जानकारी है और न तो फुकहा ए किराम के फत्वों की तहकीकात है ।
कब्रों पर फूल डालना और चिराग वगैरह जलाना ?
हजरत इब्ने अब्बास रजि. कहते है कि हुजूर नबी करीम सल्ल. दो कर्बों पर से गुजरे , तो आपने फरमाया इन दोनों पर अजाब हो रहा है और किसी बडी बात पर अजाब नहीं हो रहा है :-
1. एक तो उनमें से पेशाब से बचता न था ।
2. दूसरा चुगलखोरी करता था ।
फिर आपने एक तर शाख ली और उसे चीर कर दो टुकड़े कर दिये और हर कब्र पर एक टुकडा गाड दिया ।
सहाबा रजि. ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल. ! यह आपने क्यों किया ?
फरमाया उम्मीद है कि जबतक ये दोनों लकडियां सूख न जाएं अजाब उन पर कम रहेगा ।
[ बुखारी 211, सही मुस्लिम 250 ]
1. एक तो उनमें से पेशाब से बचता न था ।
2. दूसरा चुगलखोरी करता था ।
फिर आपने एक तर शाख ली और उसे चीर कर दो टुकड़े कर दिये और हर कब्र पर एक टुकडा गाड दिया ।
सहाबा रजि. ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल. ! यह आपने क्यों किया ?
फरमाया उम्मीद है कि जबतक ये दोनों लकडियां सूख न जाएं अजाब उन पर कम रहेगा ।
[ बुखारी 211, सही मुस्लिम 250 ]
नबी ए करीम सल्ल. का यह एक मोजिजा था । हम लोग अगर पूरे का पूरा पेड किसी कब्र पर रख दे तब भी अजाब कम नहीं हो सकता । हम खुद अपने होने वाले अजाब को कम नहीं कर सकते, तो दूसरों के अजाब को क्या कम करायेंगे । और नबी करीम सल्ल. ने उन लोगों की कब्रों पर हरी डाली लगायी थी जिन की कब्रों पर अजाब हो रहा था अब आप अगर इस हदीस से फूल चढाने की दलील लेते है तो सबसे पहले उस कब्र पर अजाब साबित करना पडेगा, जिस कब्र पर आप फूल चढाते है और तमाम उम्मत का इस बात पर इत्तिफाक है कि हकीकत में जो अल्लाह के वलि है उन पर अजाब नहीं होता ।
हजरत उमर बिन खत्ताब रजि. से रिवायत है कि वह (तवाफ में) काले पत्थर (हजरे अस्वद) के पास आये फिर उसको बोसा दिया और कहा कि बेशक मैं जानता हूँ कि तू एक पत्थर है न किसी को नुक्सान पहुंचा सकता है और न फायदा पहुंचा सकता है और अगर मैने नबी करीम सल्ल. को तेरा बोसा देते न देखा होता तो मैं तुझे हरगिज बोसा न देता ।
[सही बुखारी 1482, तिर्मिजी 775]
हजरत उमर रजि. का इन लफ्जों से मकसद यह था कि कहीं अगले जमाने के लोग सिर्फ पत्थर की ताजीम व तक्रीम न करने लगें और उसको नफा या नुकसान का मालीक न समझ बैठे और उसका चूमना देखकर लोग किसी फित्ने में मुब्तला न हो जायें ।
[सही बुखारी 1482, तिर्मिजी 775]
हजरत उमर रजि. का इन लफ्जों से मकसद यह था कि कहीं अगले जमाने के लोग सिर्फ पत्थर की ताजीम व तक्रीम न करने लगें और उसको नफा या नुकसान का मालीक न समझ बैठे और उसका चूमना देखकर लोग किसी फित्ने में मुब्तला न हो जायें ।
अब कब्रों पर चिराग जलाने और कब्रों को सजाने के बारे में भी सुन ले और फिर खुद अपनी अक्ल और ईमानदारी से इंसाफ करें कि हम शरीयत पर है या जहालत पर ?
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि. फरमाते है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कब्रों की जियारत करने वाली औरतों पर लानत फरमायी है और कब्रों पर मस्जिद बनाने और चिराग जलाने वालों पर भी लानत फरमायी है ।
[अबूदाऊद 1479, तिर्मिजी 280, मिश्कात 682,]
[अबूदाऊद 1479, तिर्मिजी 280, मिश्कात 682,]
इस हदीस में नबी करीम सल्ल. ने तीन किस्म के लोगों पर लानत फरमायी है :-
1. कब्रों की जियारत करने वाली औरतों पर लानत । आजकल औरतें बहुत ज्यादा मजारों पर जाती है वे तो लानत की मुस्तहिक होती ही है लेकिन उस औरत का बाप भाई या शौहर या बेटा अगर उस औरत को खुशी से मजारों पर भेजता है तो भेजने वाले पर भी लानत होगी क्योंकि शराब पीना हराम, तो पिलाना भी हराम, सूद का लेना हराम, तो सूद का देना भी हराम।
2. दूसरा कब्रों पर मस्जिद बनाने वालो पर लानत । इन लफ्जों का यह मतलब नहीं है कि कब्रों पर कोई मस्जिद बना डाले, तो उस पर लानत, बल्कि इसका मतलब यह है कि जितनी ताजीम और अदब मस्जिद की होनी चाहिये उस कब्र की ताजीम व अदब बढा देने पर लानत फरमायी है । अब सुनिये और इंसाफ कीजिये -
आपने किसी मस्जिद में सोन या चांदी के दरवाज़े नहीं देखे होंगे, मगर कुछ दरगाहों में आपने देखे होंगे, कहीं कहीं तो सोने चांदी की जालियां होती है और कहीं कहीं तो दरवाजे भी बने हुये देखें होंगे। जब कब्रे सजायी जाती है तो उन उन कब्रों की इज्जत और अदब व ताजीम जामा मस्जिदों से भी बढ जाती है मस्जिदे नबवी सल्ल. से भी बढ जाती है और काबा शरीफ से भी बढ जाती है । आप कहीं भी किसी मुल्क में, किसी कस्बे या शहर में, किसी मस्जिद में नमाज पढने जायेंगे तो आप अपने जूते मस्जिद में ले जाना चाहे तो ले जा सकते है और एहतियात से रख सकते है यहाँ तक कि जो लोग हज को जाते है वे मस्जिदे नबवी सल्ल. में भी अपनी जूतिंया रख सकते है और काबा शरीफ के अडोस पडौस में आप जहां चाहे अपनी जूतियां रख सकते है लेकिन आप अपनी जूतियां दरगाह में नहीं ले जा सकते क्योंकि अब उस दरगाह का मर्तबा मस्जिदे नबवी सल्ल. से और काबा शरीफ से भी बढ गया है ।
आपने किसी मस्जिद में सोन या चांदी के दरवाज़े नहीं देखे होंगे, मगर कुछ दरगाहों में आपने देखे होंगे, कहीं कहीं तो सोने चांदी की जालियां होती है और कहीं कहीं तो दरवाजे भी बने हुये देखें होंगे। जब कब्रे सजायी जाती है तो उन उन कब्रों की इज्जत और अदब व ताजीम जामा मस्जिदों से भी बढ जाती है मस्जिदे नबवी सल्ल. से भी बढ जाती है और काबा शरीफ से भी बढ जाती है । आप कहीं भी किसी मुल्क में, किसी कस्बे या शहर में, किसी मस्जिद में नमाज पढने जायेंगे तो आप अपने जूते मस्जिद में ले जाना चाहे तो ले जा सकते है और एहतियात से रख सकते है यहाँ तक कि जो लोग हज को जाते है वे मस्जिदे नबवी सल्ल. में भी अपनी जूतिंया रख सकते है और काबा शरीफ के अडोस पडौस में आप जहां चाहे अपनी जूतियां रख सकते है लेकिन आप अपनी जूतियां दरगाह में नहीं ले जा सकते क्योंकि अब उस दरगाह का मर्तबा मस्जिदे नबवी सल्ल. से और काबा शरीफ से भी बढ गया है ।
हजरत अबूहुरैरहा रजि. कहते है , अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :-
जब तुम में से कोई आदमी नमाज पढे तो अपनी जूतियों को दायें बायें न रखे इसलिये कि बायें जानिब रखना दूसरे के दायें जानिब रखना होगा, बल्कि जूतियों को पांव के दर्मियान रख लें ।
[अबूदाऊद 649, इब्ने माजा 1452]
जब तुम में से कोई आदमी नमाज पढे तो अपनी जूतियों को दायें बायें न रखे इसलिये कि बायें जानिब रखना दूसरे के दायें जानिब रखना होगा, बल्कि जूतियों को पांव के दर्मियान रख लें ।
[अबूदाऊद 649, इब्ने माजा 1452]
इसके अलावा तवाफ काबे का था ये लोग दरगाहों का तवाफ करने लगे, बोसा देना हजरे अस्वद का था ये लोग दरगाहों को चूमने लगे, बरकत वाला पानी जमजम का था ये लोग कब्रों को दो धो कर यानी गुस्ल देकर और उस गुस्ल वाले पानी को तबर्रूक और बरकत वाला समझ कर पीने लगे और बेचने भी लगे है । गिलाफ तो काबे पर चढाया जाता है ये लोग कब्रों पर हजारों रूपये की कीमती गिलाफ चादर चढाने लगे । सज्दा अल्लाह ताआला को था ये ये जाहिल कब्रों पर सजदा करने लगे । अदब से हाथ बांधकर नमाज में खडे रहने का हुक्म था ये लोग कब्रों पर हाथ जोडे खडे रहने लगे और जब दरगाह से बहार निकलेंगे तो उस वक्त ये जाहिल लोग दरगाह को पीठ देकर नहीं निकलेंगे बल्कि उलटे पैर पीछे हटते हटते बाहर निकलेंगे। हज को जाने वाले हाजी लोग काबे को पीठ देकर वापस हो सकते है नबी करीम सल्ल. के रोजे को पीठ देकर बाहर निकल सकते है मगर दरगाह को पीठ देकर आप बाहर नहीं निकल सकते जहालत की भी कोई हद है ।
3. तीसरा कब्रों पर चिराग जलाने वालो पर लानत उपर हदीस में देख लें ।
अब आप ही अन्दाजा लगा ले कि आज इन दोनों तरीकों के सिवा कब्रों और मजारों पर क्या कुछ नहीं होता, यानी कब्र का तवाफ करना, कब्रों को धो धो कर पीना, वहां पर हाल चढा के सर धुनना, मुशायरा और कव्वाली कराना, रंडियों का गाना, मजार पर सजदे करना, नियाज व नज्र चढाकर हाजतें मांगना, मासूम बच्चों को तुर्बतों पर लिटाना, लोबानदानी की खाक चाटना , घोडे लटकाना , पालने टांगना, डोरे धागे मजारों की जालियों में अपने अपने नाम के बांधना और तुर्बतों पर घुमा घुमा कर डोरों को अपनी गरदनों, बाजुओ, कमर और पेडू पर बांधना, ये तमाम काम नाजायज व हराम और गुमराही व जहालत के तरीके है जो इंसान को शरीअत से महरूम करके शिर्क व कुफ्र तक ले जाते है ।
हजरत आईशा रजि. फरमाती है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. अपने मरजुल ......मौत....... में यह फरमाते थे :- पहले बोलने का सलिखा सीखले ओर जो कह रहा ह ना पहले खुद बुखारी सरीफ हदीस pad नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम खुद कब्रो पर तसरीफ करते और लोगो से की कहा कि तुम भी जाया करो कि ये आख़िरत की याद ताजा करती ह ओर सजदे की बात तो सजदा अल्लाह के अलावा किसी को जायज नही ओर जब तक दिल से निय्यत ना हो तो वो सजदा भी नही तो इसमें कहा पर गलत ह सब गुमराही को नही तुमने सैतान को चुना ह हक़ पर सिर्फ हिनफी सुन्नी अहले सुन्नत वल जमा-अत ह
ReplyDeleteTumhari baat to sahi hai ki sajdah dil se ho to hi sajdah kehlayega aur jaisa ki tumne bataya ki haz.ayesha raz. farmati hain ki aap SAW khud kabaro pr tasreef krte aur logo se bhi kahan ki tum bhi jaya kro ki ye akhirat ki yaad taza krti hain to beshak ye sahi hai ki kabar serf isiliy banai gyi hain ki jab ham AAP SAW ki ummat kabar me jaye to hame bhi yaad aye ki ek din hambhi isi mitti me dafan honge. hame khauf aye Allah ka hame yaad aye ki ham uski hi ibadat krne aye hain is duniyah me magar tum ye bhi jano ki rasulallah sallallaho alaeyhi wasallam me farmaya ki kabare uchi na rakho ...uchi dikhe to barabar kardo or phir tum kehto ho ki majaar jao or sajda kro lekin dil se na ho to phr kis baat ka sajdah kr rahe ho kis niyat se kar rahe ho serf kabar jane ki baat hui hai jo kacchi raha krti thi or ab pakki krdi gyi hai jo ki saaaf mana hai or tum use ulta kehte ki sahitaan ko chune ho ab tum ye batao ki tumne uski niyat kaise parhli ki usne shaitaan ko chuna hai? aur agar sajdah sachme niyati na ho to wo sajdah nhi to jab Allah ne jab sare farishto se kaha ki adam ko sajdah karo jisme iblees bhi tha to bhai ab shaitaan to tumhare dimaag se bhi itna zyada dimag rakhta ki tumhe ghumrah krdeta aur tumhe pata bhi nahi chlta aur phir baadme tum Allaho se ro ro kar duaa krte ki hamari is galti ko muaf krde!! to phir ab apke paas dimag hoto ye bhi sochen ki shaitaan hamse zyada akaldar wo bhi sajda krdeta lekin dil se sajda na krta to wo tab jannat se na nikala jata lekin sajda ka mtlb tum kya smjhrye ho yahan sidhe sidhe to tum khud shaitaan ko chunrye ho!!lanat.
Deleteaur han kahi kahi pe meri typing glt hogyi hai un words ko headline na banalena !! Allah Hafiz
ReplyDeleteI am muslim.ham logo ko firqa nhi dekhna chahiye .Quran.or Hadees par amal karna chahiye.Allah ke liye sabse mohabbat rakhna chahiye nafrat nhi
ReplyDeleteSir ye kabron wali hadees no sai nahi mil Rahi hai please help main Islamic 360 mai search kiya
ReplyDeleteYe Jitne bhi Hanafi Sunni Na hokar Bareviyat wale hain sab paisa kamane m lage hue hain. Pehle peer banate hain fir unki mazar aur fir mazar ke liye chanda falana dhimkana aur fir mazar pr chaddarein aur Niyazein. Sab se paisa banate hain. Inke saamne kitab khuli hui hoti hain lekin ge apne dhandhe se nahi hat'te. Quam ko gumhrah krne walo par Allah ki Lanat ho.
ReplyDeleteFiroz (Sunni Ibn e Sunni.)